संत गोपाल जी सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज की सेवा में हमेशा तत्पर रहते थे। एक बार स्वामी जी के साथ वे गोरखपुर स्टेशन पर उतरे। वहाँ से आगे की यात्रा के लिए ट्रेन बदलनी थी, जो सुबह 7 बजे आने वाली थी। स्वामी जी रात 12 बजे भोजन करके प्लेटफार्म पर ही सो गए। उन्होंने गोपाल जी से कहा, “तुम भी सो जाओ, लेकिन होशियारी से। यह गोरखपुर स्टेशन है, यहाँ गोरखधंधा बहुत होता है।”
स्वामी जी की यह बात सुनकर संत गोपाल जी पूरी रात जागकर पहरा देते रहे। इसी बीच दो चालाक चोर आ गए। उनमें से एक ने गोपाल जी से मीठी-मीठी बातें शुरू कर दीं, जबकि दूसरा स्वामी जी का लोटा, गिलास और झोला चुपके से लेकर भाग गया। अपना काम पूरा होने के बाद दूसरा चोर भी वहाँ से भाग निकला। संत गोपाल जी यह सब समझ नहीं पाए।
सुबह होने पर स्वामी जी ने पानी के लिए लोटा माँगा। जब संत गोपाल जी ने सामान गायब देखा, तो उनके होश उड़ गए। वह डर और अपराधबोध से भर गए। स्वामी जी ने उन्हें शांत करते हुए कहा, “डरो मत। चोर दक्षिण दिशा में गए हैं। तुम उधर जाओ।”
संत गोपाल जी दक्षिण दिशा की ओर कुछ दूर गए, तो दोनों चोर उन्हें मिल गए। उनमें से एक चोर लोटा-गिलास धो रहा था। संत गोपाल जी ने उनसे कहा, “यह लोटा-गिलास हमारे सद्गुरु देव जी का है। तुम लोग इसे क्यों ले गए?”
सद्गुरु का नाम सुनते ही दोनों चोर भयभीत हो गए। वे तुरंत स्वामी जी के पास दौड़े और अपनी गलती के लिए माफी माँगने लगे। उन्होंने कहा, “सरकार, हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई। हम लोग बहुत गरीब हैं, इसलिए आपका सामान चुरा लिया।”
दयालु सद्गुरु सदाफल देव जी ने उन दोनों को क्षमा कर दिया और कहा, “कहीं जाकर मेहनत का काम करो और घर-गृहस्थी को अच्छे से चलाओ। तुम्हारा जीवन सफल हो जाएगा।”
सद्गुरु देव जी की कृपा से कुछ समय बाद दोनों चोरों को अच्छा काम मिल गया। उनकी जिंदगी बेहतर हो गई और वे सुखपूर्वक रहने लगे। साथ ही, वे सद्गुरु देव जी से उपदेश लेकर उनके शिष्य भी बन गए।