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भागवत कथा

संजीवनी ज्ञानामृत/आत्मघाती अहंकार से बचिए।

अहंकार” के कारण न केवल मनुष्य जाति हिंसा तथा विनाश का शिकार हुई है बल्कि उसके कारण मनुष्य का नैतिक पतन भी हुआ है । स्वार्थ, संकीर्णता, अनुदारता, लोभ, परस्वत्वापहरण जैसे दुर्गुणों का एकमात्र जनक भी “अहंकार” ही है
संपन्नता व्यक्ति की “श्रमशीलता” और “पुरुषार्थ” का पुरस्कार है, इसलिए वह सम्माननीय है, परंतु “अहंकार” उसे अपना लक्ष्य बना लेता है । संपन्न होना इसलिए भी आवश्यक है उसके बल पर जीवन यापन का क्रम सुख सुविधा पूर्वक चलाया जा सके ।  यद्यपि आध्यात्मिक जीवन दर्शन की प्रेरणा तो यह है कि मनुष्य अपनी आवश्यकताएँ अनिवार्य स्तर तक ही सीमित रखें और उन्हें पूरा करने के बाद बचा समय व श्रम मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने में लगाये। फिर भी सुख सुविधाओं के साधनों को एक सीमा तक छूट दी जा सकती है लेकिन उनकी आकांक्षा जब इस भावना से प्रेरित होकर बढ़ने लगती है कि हमें दूसरों की तुलना में संपन्न दिखाई देना है, तो वह भावना “लोभ” के अंतर्गत आ जाती है जिसकी कोई सीमा नहीं है । लोभ की सीमा इसलिए नहीं है कि दस व्यक्तियों की तुलना में संपन्न होने के बाद व्यक्ति को दिखाई देने लगता है कि सौ दूसरे व्यक्ति उससे ज्यादा संपन्न है, उसको कसक होती है और वह उन सौ व्यक्तियों से भी आगे निकल जाना चाहता है ।
“अहंकार” सदैव दूसरों को मापदंड बनाकर चलता है । दूसरों से तुलना कर अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रवृत्ति का नाम ही “अहंकार” है । भले ही फिर कोई सिद्ध कर पाए या न कर पाए सिद्ध करने की चेष्टा में लगा रहे । अपनी जिन मौलिक विशेषताओं पर गर्व किया जा सकता है, वे “अहंकार”  से भिन्न है क्योंकि अपने आप पर गर्व करना तथा उन विशेषताओं की दूसरों के साथ तुलना न करना व्यक्तियों में संतोष, शीलता और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव उत्पन्न करता है । जबकि लोग अपनी उपलब्धियों को दूसरों से बढ़-चढ़कर बताते हैं तो उनमें अहंकार की भावना ही काम करती है।
अहंकार ही प्रत्येक देश और घर में दु:खों का मूल कारण है । परिवार में भी अहंकार के कारण क्लेश, कलह और विग्रह का वातावरण बनता है । पति अपने को पत्नी से श्रेष्ठ समझता है इसलिए वह तरह-तरह से उस पर अपना प्रभुत्व जमाता है। पत्नी का स्वभाव यदि समझौता वादी हुआ तो वह पति के अहंकार को किसी प्रकार निबाह ले। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह पति के अहंकार पूर्ण दावे को पचा लेगी। पत्नी भी यदि अपने। अहम के प्रति उतनी सजग, आग्रहशील रही तो  नित्य का क्लेश परिवार के वातावरण को नर्क बना डालेगा ।
दूसरे कई दुर्गुण ऐसे हो सकते हैं जो लोगों को समीप ला सकते हैं। शराबी, शराबी के साथ चोर एक दूसरे के मित्र हो सकते हैं, यह भी देखने में आता है कि दो समान स्वभाव के दुर्गुणी व्यक्ति एक दूसरे के अच्छे मित्र बन जाते हैं, परंतु किन्हीं व्यक्तियों में सभी सद्गुण हों,  किंतु उनमें “अहंकार” का एक ही दुर्गुण हो तो फिर कभी एक दूसरे के समीप नहीं जाएँगे। अधिकांश सद्गुणी व्यक्तियों में जिनमें कोई दुर्गुण होता है उनमें पहला नंबर “अहंकार” ही होता है। इसीलिए दुष्ट दुर्जनों की अपेक्षा सज्जन प्रकृति के व्यक्ति ज्यादा असंगठित रहते हैं ।