“सद्गुणों” की मनुष्य में कभी नहीं है, जिसे बुरा या दुर्गुणी कहते हैं वह बेशक देव श्रेणी के सुसंस्कृत मनुष्यों से सात्विक गुणों में पीछे है तो भी यथार्थ में ऐसी बात नहीं है, वह बिलकुल बुरा ही हो।
निष्पक्ष रीति से यदि उसकी मनःस्थिति का परीक्षण किया जाए तो बुराइयों की ही अधिक मात्रा उसमें न मिलेगी। चौरासी लाख योनियों को पार करता हुआ जो प्राणी मुक्ति के अंतिम प्रवेश द्वार पर आ खड़ा हुआ है वह उतना घृणित नहीं हो सकता जितना कि समझा जाता है। जो विद्यार्थी एम० ए० के प्रथम वर्ष में है, कॉलेज की सर्वोच्च डिग्री प्राप्त करने में जिसे केवल एक ही वर्ष और लगाना शेष रह गया है, क्या आप उसे अशिक्षित, बेपढ़ा-लिखा कहेंगे? आवेश में चाहे जो कह सकते हैं पर शांत अवस्था में यह मानना पड़ेगा कि इतना अधिक परिश्रम करने के उपरांत इतनी कक्षाओं को उत्तीर्ण करता हुआ जो छात्र एम० ए० के प्रथम वर्ष में है वह पढ़ा है, विद्यावान है।
संभव है आप अपने को मूर्ख, दुर्गुणी अनुभव रहित, अल्पज्ञ, अशक्त या ऐसे ही अन्य दोषों से युक्त समझते हैं, दूसरे लोग जब आपका मजाक उड़ाते हैं, मूर्ख बताते हैं, विश्वास नहीं करते, नाक-भौं सिकोड़ते हैं, सहयोग नहीं करते और बार-बार यह कहते हैं कि आप अभागे हैं, बेवकूफ हैं। शऊर नहीं, सदा असफल ही रहेंगे, तो संभव है कि आपका मन बैठ जाता हो और सोचते हों कि इतने लोगों का कहना क्या झूठ थोड़े ही होगा, हो सकता है कि मैं ऐसा ही होऊँ। पिछली अपनी दो-चार असफलताओं की ओर जब ध्यान जाता होगा और उन घटनाओं को लोगों के कथन से जोड़कर देखते होंगे तो संभव है मन में यह बात और भी बैठ जाती हो कि हम अशक्त हैं, अल्प बुद्धि हैं, सदगुणों से रहित हैं, हमें इस जीवन में कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिल सकती । दो चार छोटी-मोटी बुराइयाँ यदि आपमें हैं तो वे विजातीय होने के कारण बार-बार आपका ध्यान खींचेंगी और पूर्ण विवेक एवं निष्पक्ष परीक्षण शक्ति की कमी रही तो संभव है आप कभी बुरे नतीजे पर पहुँच जाएँ। वे बुराइयाँ आपके ध्यान को अपने में उलझाए रहेंगी और अच्छाइयों तक दृष्टि न पहुँचने देंगी। ऐसी दशा में कोई व्यक्ति यह विश्वास कर बैठ सकता है कि मुझ में बुराइयाँ, पाप-वासनाएँ, दुर्भावनाएँ, अयोग्यताएँ अधिक हैं, इससे नीची ही स्थिति में पड़ा रहूँगा, आगे और भी नीचा हो जाऊँगा, ऊँचा चढ़ना कठिन है।
ऐसा निराशापूर्ण विचार और विश्वास, भ्रम पूर्ण, एकांगी और आवेश में आकर निश्चय किए हुए होते हैं। इनमें कोई तथ्य नहीं, इनसे कोई लाभ नहीं, यह निरर्थक विचार प्रेरक शक्ति से बिलकुल शून्य होने के कारण सर्वथा अग्राह्य हैं। हानि, पतन और झुंझलाहट की आत्मघाती, विषैली भावनाएँ इससे उपजती हैं जिससे हर प्रकार का अपकार ही अधिक होता है।
असल में मानव तत्त्व में दुर्गुणों की मात्रा इतनी नहीं है जो सद्गुणों से अधिक हो, कम से कम इतना तो निश्चित है कि जिनके हाथों में यह पुस्तक पहुँची है जिनकी आँखें इन पंक्तियों को पढ़ने में रुचि ले रही हैं वे दुर्गुण प्रधान नहीं हैं। आप अपने गुण- अवगुणों पर एक बार पुनः दृष्टिपात कीजिए, निष्पक्षता पूर्वक निरीक्षण कीजिए तो हम विश्वास दिलाते हैं कि आपको इस परिणाम पर पहुँचने के लिए विवश होना पड़ेगा कि आप में दुर्गुणों की अपेक्षा सद्गुण अधिक हैं। सचाई इसके लिए मजबूर करेगी कि अपने अंदर उच्च गुणों की अधिकता को स्वीकार करें। मनुष्य शरीर, इसमें भी शिक्षित, फिर आध्यात्मिक विषयों में दिलचस्पी, यह तीनों एक से बढ़कर एक प्रमाण हैं जो साबित करते हैं कि आप अच्छे हैं, बुद्धिमान हैं, विवेकशील हैं और ऊपर की ओर चल रहे हैं।
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*꧁जय श्री राधे꧂*
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