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भागवत कथा

शरीर छोड़ने के बाद 47 दिनों तक क्यों भटकती है आत्मा?

मृत्यु के बाद शरीर से आत्मा कहां जाती है? क्या करती है? नर्क और स्वर्ग का सफर किस तरह से तय करती है? 
रहस्य।
यह बातें आज तक रहस्य हैं। मगर इस रहस्य से पर्दा उठता है गरुड़ पुराण से। गरुड़ पुराण इकलौता ऐसी किताब है जिसमें मौत के रहस्य का राज खोला गया है। आपको यह जानकार हैरानी होगी की आत्मा 1584000 किलोमीटर दूरी तय करके यमलोक पहुंचती है। यह यात्रा 47वें दिन ख़त्म होती है। इन 47 दिनों तक आत्मा तमाम यातनाएं झेलती हैं।
 मृत्यु अटल सत्य है।
  सनातन धर्म में मृत्यु होने के बाद आत्मा के स्वर्ग गमन या नर्क गमन की मान्यता है। शास्त्रनुसार जो व्यक्ति सुकर्म करता है वह स्वर्ग गमन करता हैए जबकि जो व्यक्ति कुकर्म करता है वो नर्क गमन करता है। 

शास्त्रनुसार मृत्यु उपरांत आत्मा को सर्वप्रथम यमलोक ले जाते है। इस यमलोक की यात्रा मृत्यु के बाद 47 दिन में ख़त्म होती है। इसके लिए आत्मा को कई लाख किलोमीटर चलना पड़ता है। यमलोक में यमराज आत्मा के पाप-पुण्य के आधार पर आत्मा की स्थिति तय हैं । मृत्यु उपरांत आत्मा के भूलोक से यमलोक तक के सफर का विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में दिया हुआ है।

मृत्यु करीब आती है तो बोल नहीं पाता इंसान।
गरुड़ पुराण में यह इंकित है की किस प्रकार व्यक्ति के प्राण छूटते हैं। गरुड़ पुराण अनुसार मृत्यु से पूर्व व्यक्ति बोल नहीं पाता है । अंत समय में व्यक्ति में दिव्य दृष्टि आ जाती है तथा उसे सारा जगत ब्रह्म स्वरूप लाग्ने लगता है। व्यक्ति के जड़ अवस्था में आने इंद्रियां नष्ट हो जाती हैं फलस्वरूप मुंह से लार या झाग टपकने लगती है ।पापियों के प्राण गुदा द्वार से निकलते हैं ।

पापात्मा को सहना पड़ता है यह।

गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु काल पर पाशदंड धारण किए हुए भयानकए क्रोधयुक्त दो यमदूत प्राणी के पास आते हैं। यमदूतों को देखकर प्राणी का भय के कारण मलमूत्र निकल जाता है । यमदूत पापात्मा के गले में पाश बांधकर उसे यमलोक ले जाते हैं । पापात्मा को रास्ते यमदूत भयभीत करते हैं नर्क की यातनाओं के बारे में बताते हैं ।ऐसी बातें सुनकर पापात्मा रोदन करने लगती है । इसके उपरांत पापात्मा को कुत्तों द्वारा काटा जाता है । इस समय दुखी पापात्मा अपने पापकर्मों को याद करते करता हुआ आगे बढ़ता है । पापात्मा के भूख.प्यास से व्याकुल होने पर यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे धकेलते हैं । पापात्मा कई बार गिरकर बेसुध हो जाती है । परंतु यमदूत निरंतर पापात्मा को यतनाए देते हुए अंधकारमय मार्ग से यमलोक की ओर धकेलते हैं । यमलोक 99 हजार योजन अर्थात 1584000 किलोमीटर दूर है ।
यमलोक से आत्मा की होती है घर वापसी।
गरुड़ पुराण अनुसार पापात्मा के यमलोक पहुंचने पर तथा यमदूतों की यातना सहने के पश्चात यमराज की आज्ञा अनुसार पापात्मा को पुनरू उसके घर छोड़ दिया जाता हैं । घर लौटकर पापात्मा पुनः शरीर में प्रवेश करने की चेष्टा करती हैए परंतु यमपाश से बंधी होने के कारण व भूख-प्यास वश रोती है । अंत समय में परिवार द्वारा किए हुए पिंडदान से पापात्मा की तृप्ति नहीं होती अतः भूख.प्यास से बेचैन होकर पापात्मा पुनः यमलोक लौटती है ।
पिंडदान है जरुरी।
अगर पुत्र.पौत्रों द्वारा पापात्मा को पिंडदान नहीं दिया जाता तो वह प्रेत रूप धारण कर दीर्धकाल तक दुरूखी होकर भटकती रहती है । मृत्यु के उपरांत 10 दिनों तक पिंडदान आवश्यक बताया गया है । दसवें दिन तक पिंडदान के चार भाग होते हैं । पिंडदान के दो भाग मृत देह को प्रपट होते हैंए तीसरा हिस्सा यमदूत को प्राप्त होता है तथा चौथा हिस्सा पापात्मा रूपी प्रेत का ग्रास बनता है । मृत शरीर के अंतिम संस्कार उपरांत पिंडदान से प्रेत को हाथ के बराबर शरीर प्राप्त होता है । गरुड़ पुराण अनुसार प्रेत को पहले दिन के पिंडदान से सिर, दूसरे दिन से गर्दन व कंधे, तीसरे दिन के पिंडदान से हृदयए चौथे दिन के पिंडदान से पीठ, पांचवें दिन के पिंडदान से नाभि, छठे व सातवें दिन के पिंडदान से कमर व नीचे का भाग, आठवें दिन के पिंडदान से पैर, नवें दिन के पिंडदान से प्रेत का शरीर बनता है । 
दसवें दिन के पिंडदान से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है तथा प्रेत की भूख-प्यास उत्पन्न होती है । पिंड शरीर धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेतरूप में ग्यारहवें व बारहवें दिन का भोजन करता है । तेरहवें दिन यमदूत प्रेत को बंदर की तरह पकड़ लेते हैं । वैतरणी नदी से यमलोक के छियासी हजार योजन के सफर पर प्रेत प्रतिदिन दो सौ योजन चलता हुआ 47वें दिन यमलोक पहुंचता है ।