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ज्ञान की बात

यात्रा बहुत छोटी है। Story कमलेश दत्त मिश्र

गया/बिहार। एक वृद्ध महिला बस में यात्रा कर रही थी। एक बसस्टॉप पर बस रुकी व एक बड़बड़ाती हुई क्रोधी युवती बस में चढ़ी। वह बूढ़ी महिला के बगल में बैठ गई।
 उस क्रोधी युवती ने अपना सामान रखते हुए उस बूढ़ी महिला को बैग से कई बार चोट पहुंचाई। पर बूढ़ी महिला चुपचाप बैठी रही। उसने युवती की धक्कामुक्की या बड़बड़ाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
जब उस युवती ने देखा कि उसके बार बार ऐसा करने पर भी बुजुर्ग महिला चुप है,तो आखिरकार युवती से पूछे बिना रहा नहीं गया कि जब उसने उसे अपने बैग से मारा तो उसने शिकायत क्यों नहीं की?
बुज़ुर्ग महिला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया: “असभ्य होने या इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आपके बगल में,आपके साथ मेरी यात्रा बहुत छोटी है। इतनी छोटी कि अगले स्टॉप पर मैं उतरने जा रही हूं। उतरने के बाद यह घटना मुझे याद भी नहीं रहेगी।”
यह उत्तर सोने के अक्षरों में लिखे जाने के योग्य है: “इतनी तुच्छ बात पर चर्चा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक साथ हमारी यात्रा बहुत छोटी है।”
हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों, ईर्ष्या, दूसरों को क्षमा न करने, असंतोष और बुरे व्यवहार के साथ व्यय करना समय और ऊर्जा की एक हास्यास्पद बर्बादी है।
क्या किसी ने आपका दिल तोड़ा है?  शांत रहिए।
यात्रा बहुत छोटी है।
क्या किसी ने आपको धोखा दिया, धमकाया, या अपमानित किया? आराम करें । तनावग्रस्त न हों। भूल जाइए।
 यात्रा बहुत छोटी है।
क्या किसी ने बिना वजह आपके मन को चोट पहुंचाई? शांत हो जाइए।  इसे अनदेखा कीजिए।
 यात्रा बहुत छोटी है।
क्या किसी पड़ोसी या किसी सहकर्मी ने ऐसी टिप्पणी की जो आपको पसंद नहीं आई?  शांत रहिए।  उसकी ओर ध्यान मत दीजिए।  उसे क्षमा कर दीजिए।
 यात्रा बहुत छोटी है।
हमारी यात्रा की लंबाई कोई नहीं जानता।  कोई नहीं जानता कि हम अपने पड़ाव पर कब पहुंचेंगे। 
दरअसल, कहीं ना कहीं हर किसी के साथ हमारी यात्रा बहुत छोटी है।
आइए, हम यथासंभव क्षमाशील बनने का प्रयास करें। 
क्षमा करना अगर कठिन लगे, कम से कम हम अपना ध्यान उन बातों पर से हटा सकते हैं जो हमारे मन को उदासी के अँधेरों में खींच ले जाती हैं। किसी अन्य के लिए नहीं, हमें अपनी स्वयं की मानसिक शांति के लिए तनाव देनेवाली छोटीछोटी बातों एवं दूसरों की गलतियों को भूलने की आवश्यकता है।
अंततः,हम कृतज्ञता और आनंद से भर जाएंगे।
हमारे पास मन को दुखी रखने के लिए समय नहीं है। हमारी एक साथ यात्रा बहुत छोटी है। हमारा प्रयास इसे शांतिपूर्वक, हँसीखुशी से पूर्ण करने का होना चाहिए।
मैंने अपनी यात्रा मुस्कुराते हुए पूर्ण करना चुना है। 
और आपने ?
 
प्रेम से बोलिये सद्गुरुदेव भगवान की जय।