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१६ अगस्त २०२४ शुक्रवार- ‼️
-श्रावण शुक्लपक्ष एकादशी २०८१-
आज के समय का मनुष्य मोह,स्वार्थ मिथ्या अहंकार में डूबकर प्रति एक कार्य कर रहा है । उसके भाषण में स्वार्थ का मिथ्यावाद है ।
जब भी मन जोश से पूर्ण होता है,वह ऊंची ऊंची पर्वत श्रृंखला को भी जीत लेता है,मन को सदैव ऊर्जावान बनाए रखने का संकल्प अच्छे विचारों से सहमती है । ” मन के हारे हार है मन के जीते जीत “।
व्यवहार की मधुरता, सरलता और निष्कपटता में वह शक्ति होती है जो दूसरों के बंद द्वार खोल देती है। प्रारंभिक मिलन के […]