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भागवत कथा

प्रथम श्रावण❗ कृष्णपक्ष प्रतिपदा २०८०/संजीवनी ज्ञानामृत‼️ प्रार्थना में अतुलनीय बल है|

मनुष्य कितना दीन-हीन, स्वल्प शक्ति वाला, कमजोर है । यह प्रतिदिन के जीवन से पता चलता है । उसे पग-पग पर परिस्थितियों के आश्रित होना पड़ता है ।

 कितने ही समय तो ऐसे आते हैं, जब औरों से सहयोग न मिले तो उसकी मृत्यु तक हो सकती है । इस तरह विचार करने से तो मनुष्य की लघुता का ही आभास होता है, किंतु मनुष्य के पास एक ऐसी भी शक्ति है जिसके सहारे वह  लोक-परलोक की अनंत सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी बनता है । वह है प्रार्थना की शक्ति, परमात्मा के प्रति अविचल श्रद्धा और अटूट विश्वास की शक्ति । मनुष्य प्रार्थना से अपने को बदलता है, शक्ति प्राप्त करता है और अपने भाग्य में परिवर्तन कर लेता है । विश्वासपूर्वक की गई प्रार्थना पर परमात्मा दौड़े चले आते हैं । सचमुच उनकी प्रार्थना में बड़ा बल है, अलौकिक शक्ति और अनंत सामर्थ्य है ।

“प्रार्थना” विश्वास की प्रतिध्वनि है । रथ के पहियों में जितना अधिक भार होता है, उतना ही गहरा निशान वे धरती में बना देते हैं । प्रार्थना की रेखाएं लक्ष्य तक दौड़ी जाती हैं, और मनोवांछित सफलता खींच लाती हैं । विश्वास जितना उत्कृष्ट होगा परिणाम भी उतने ही सत्वर और प्रभावशाली होंगे ।

“प्रार्थना” आत्मा की आध्यात्मिक भूख है । शरीर की भूख अन्न से मिटती है, इससे शरीर को शक्ति मिलती है । उसी तरह आत्मा की आकुलता को मिटाने और उसमें बल भरने की सत् साधना परमात्मा की ध्यान-आराधना ही है । इससे अपनी आत्मा मे परमात्मा का सूक्ष्म दिव्यत्व झलकने लगता है और अपूर्व शक्ति का सदुपयोग आत्मबल संपन्न व्यक्ति कर सकते हैं । निष्ठापूर्वक की गयी प्रार्थना कभी असफल नहीं हो सकती ।

आत्मा-शुद्धि का आवाहन भी “प्रार्थना” ही है । इससे मनुष्य के  अत:करण में देवत्व का विकास होता है । विनम्रता आती है और गुणों के प्रकाश में व्याकुल आत्मा का भय दूर होकर साहस बढ़ने लगता है। देव हमारे साथ रहती है ।  ऐसा महसूस होने लगता है, जैसे कोई असाधारण शक्ति सदैव हमारे साथ रहती है । हम जब उससे परित्राण और अभावों की पूर्ति के लिए अपनी विनय प्रकट  करते हैं तो सद्य प्रभाव दिखलाई देता है और आत्म-संतोष का भाव पैदा  होता है ।

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               ꧁जय श्री राधे꧂

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