राज़ लिखूं गर उस नारी का

तो इतिहास के पन्ने बदल ना जाएं

नारी के उपहार में मेरी

कविता कहीं बदल ना जाए

नारी एक विश्वास की माला

पी जाए प्रेम वश विष का प्याला

पहनना तो हर कोई चाहे।

फिर क्यूं मैं से इतना भरमाए

संघर्ष में अबला हाय एक रह जाए

लिखते उसको नर नारी में बाएं

फिर क्यूं अकेली अग्नि संस्कार कराए

क्या मात्र नारी ही परीक्षा का आयोजन है

या पुरुष भी इस मार्ग का अनुमोदन है

मैंने देखा सदा ही उसको मिथ्या मुस्कान के फेरों में

जो जली सर्वथा नराधम अहंकारी डेरों में

क्यूं व्यर्थ में नारी को मिथ्या सहगमिनी कहते होक्यूं उसकी पवित्रता को छिन्न भिन्न तुम करते होनारी… विशेष …✍️