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आत्मीय व सांसारिक चिंतन/28Dec23 गुरुवार/पौषमाह कृष्णपक्ष द्वितीया २०८०-

संजीवनी ज्ञानामृत:- हम कितना भी भजन कर लें, ध्यान कर लें लेकिन हमारा संग अगर गलत है तो सुना हुआ, पढ़ा हुआ, और जाना हुआ कुछ भी तत्व आचरण में नहीं उतर पायेगा।
जैसे – धनवान होना है तो धनी लोगों का संग करें, राजनीति में जाना है तो राजनैतिक लोगों का संग करें। किंतु रसिक बनना है एवम् भक्त बनना है तो संतों का और वैष्णवों का संग अवश्य करना पड़ेगा।
वृत्ति और प्रवृत्ति तो संत संगति से ही सुधरती है। संग का ही प्रभाव था कि, रामायण लिखने वाले महर्षि बाल्मीकि बन गए। थोड़े से भगवान बुद्ध के संग ने अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन कर दिया। व्यवहार की शुद्धि के लिए महापुरुषों का संग अवश्य होना चाहिए। 
कठिन समय में जब मन से धीरे से आवाज आती है कि “सब अच्छा होगा”, बस यही आवाज परमात्मा की होती है। पैर में लगे कांटे ने बताया कि इस गली में ज़रूर कोई गुलाब है।
अगर काँटे जैसी कोई मुसीबत आयी है, अड़चन आयी है, और मन में आगे बढ़ने का जज़्बा है तो समझ लीजिए आगे गुलाब जैसा समाधान आपका इंतज़ार कर रहा। कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष करने पर एक बहुमूल्य सम्पत्ति विकसित होती है, जिसका नाम है “आत्मबल”।