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विहंगम योग वार्षिकोत्सव 2025 में भक्तजन सेवा, भक्ति और सद्गुरु अमृतवाणी का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए।

विहंगम योग वार्षिकोत्सव 25–26 फरवरी 2025 : सेवा और भक्ति का संदेश, सद्गुरु के अमृतवाणी ने जगाई नई प्रेरणा

(धर्म/आध्यात्म—विशेष रिपोर्ट)
विहंगम योग संस्था का वार्षिकोत्सव 25 और 26 फरवरी 2025 को श्रद्धा और उत्साह के वातावरण में संपन्न हुआ। दो दिवसीय कार्यक्रम में शिष्य-भक्तों ने सद्गुरु की शिक्षाओं, सेवा-धर्म और आध्यात्मिक अनुशासन को पुनः आत्मसात किया। विहंगम योग परिवार निरंतर विस्तार कर रहा है, और इसी बढ़ती संख्या के साथ सेवा का दायित्व भी पूर्व से अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है।

सेवा सर्वोपरि—सद्गुरु का संदेश

अमृतवाणी के दौरान सद्गुरु प्रभु ने स्पष्ट कहा कि “सेवा ही सर्वोच्च धर्म है, सेवा से ही समस्त कल्याण संभव है।”
संदेश में बताया गया कि विहंगम योग से जुड़े प्रत्येक परिवार से कम से कम एक सदस्य का सेवा में जुड़ना आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है। स्वर्वेद मंदिर में सेवा हेतु उपस्थित होना और आश्रम के आदेशों का निष्ठापूर्वक पालन करना शिष्य का प्रमुख कर्तव्य बताया गया।

सद्गुरु के दो प्रमुख सूत्र कार्यक्रम की मुख्य प्रेरणा बने—

  1. “सद्गुरु सेवा धर्म में, शिष्य होय उत्तीर्ण।
    अन्य धर्म क्या चाहिए, अन्य धर्म सब जीर्ण।। ”
  2. “सेव्य भाव सेवक रहे, उत्तरे भव निधि पार।
    अन्य भरम संसार में, सूझे वार न पार।। ”

इन अमृत वचनों ने भक्तों में नई ऊर्जा और दृढ़ निष्ठा का संचार किया।

विहंगम योग वार्षिकोत्सव 2025 में भक्तजन सेवा, भक्ति और सद्गुरु अमृतवाणी का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए

भक्ति, समर्पण और सेवा का अनूठा संगम

सेवा में संलग्न भक्तों को कार्यक्रम के अंत में संत प्रवर महाराज जी के दर्शन तथा प्रसाद प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। सभी शिष्य-भक्तों ने सामूहिक फोटो भी ली, जिसे सभी के लिए स्मरणीय क्षण बताया जा रहा है। उपस्थित जन-समूह ने इसे आत्मकल्याण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना।

विहंगम योग परिवार में बढ़ती आस्था

आयोजकों के अनुसार, विहंगम योग का प्रचार-प्रसार “दिन दूना-रात चौगुना” बढ़ रहा है। बढ़ते परिवार के साथ सेवा की भावना भी लगातार मजबूत होती जा रही है।


संत प्रवर महाराज जी की जय
सद्गुरु प्रभु जी की जय