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विनम्रता की विजय: जब लक्ष्मण ने युद्ध से पहले मांगी भिक्षा |

एक गूढ़ संकेत जो भगवान श्रीराम ने दिया, धर्मयुद्ध में सफलता का मार्ग बताया

अक्सर यह मान लिया जाता है कि युद्ध केवल शौर्य और शक्ति से जीता जाता है, परंतु रामायण के एक प्रसंग में भगवान श्रीराम ने यह सिद्ध कर दिया कि विनम्रता भी एक अमोघ अस्त्र है, जो सबसे घातक शस्त्रों पर भी भारी पड़ती है।

प्रातःकाल का समय था। लंका युद्ध अपने अंतिम चरण में था। रावण का पुत्र मेघनाथ—जो अब तक अजेय रहा था—का सामना लक्ष्मण से होने वाला था। यह वही मेघनाथ था जिसके पास ब्रह्मास्त्र, पशुपात्र जैसे दिव्यास्त्र थे, और जो देवताओं तक को परास्त कर चुका था।

युद्ध से पहले लक्ष्मण श्रीराम का आशीर्वाद लेने पहुंचे। लेकिन आश्चर्य तब हुआ जब श्रीराम ने उन्हें आशीर्वाद देने के स्थान पर एक पात्र दिया और कहा,
“पहले किसी से भिक्षा मांग लाओ, जो सबसे पहले मिले उसी से!”

यह आदेश सुनकर सभी हैरान रह गए, पर आदेश प्रभु का था। लक्ष्मण चल पड़े, और उन्हें जो पहला व्यक्ति मिला, वह रावण का एक सैनिक था। लक्ष्मण ने विनम्रता से उससे भिक्षा मांगी। सैनिक ने अन्न दे दिया। लक्ष्मण ने वह अन्न श्रीराम को अर्पित किया।

फिर प्रभु ने आशीर्वाद दिया:
“विजयी भव:”

युद्ध हुआ, भयंकर और निर्णायक। मेघनाथ ने त्रिलोक के दिव्य अस्त्र चलाए—ब्रह्मास्त्र, पशुपात्र—जिनका कोई मुकाबला नहीं था। लेकिन लक्ष्मण ने इन अस्त्रों को प्रणाम किया। उन दिव्य शक्तियों ने लक्ष्मण को आशीर्वाद देकर लौट जाना ही उचित समझा।

लक्ष्मण ने प्रभु श्रीराम का ध्यान कर बाण छोड़ा। मेघनाथ का सिर कट गया। युद्ध समाप्त हुआ।

संध्या में जब प्रभु राम शिव आराधना में लीन थे, हनुमानजी से रहा नहीं गया। उन्होंने पूछ ही लिया—
“प्रभु, भिक्षा मांगने का रहस्य क्या था?”

श्रीराम मुस्कराए और बोले:

“लक्ष्मण क्रोधी स्वभाव के हैं। युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए केवल शौर्य नहीं, विनम्रता और धैर्य भी आवश्यक हैं। मैं जानता था कि मेघनाथ दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करेगा। इन शक्तियों के सामने सिर झुकाना ही उनका उत्तर था। जब कोई वीर योद्धा भिक्षा मांगता है, तो उसके भीतर स्वतः विनम्रता का संचार होता है। उसी विनम्रता ने लक्ष्मण को विजयी बनाया।”

शिक्षा:

यह प्रसंग केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि एक गहन जीवन-दर्शन है।
जहाँ अहंकार शक्तियों को बर्बाद करता है, वहीं विनम्रता उन्हें हमारे पक्ष में कर देती है।

इसलिए धर्मयुद्ध हो या जीवन-संघर्ष—विनम्रता, धैर्य और आत्मविश्वास ही सच्ची विजय के मार्ग हैं।