आरा: लोकसभा के बजट सत्र के शून्यकाल में आज आरा सांसद सुदामा प्रसाद ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) के श्रमिकों की दयनीय स्थिति का मामला उठाया। उन्होंने सरकार से मांग की कि एफसीआई में कार्यरत श्रमिकों के लिए ‘नो वर्क नो पे’ प्रणाली को समाप्त कर उन्हें ‘डिपार्टमेंटल पैटर्न स्टाफ’ (DPS) सिस्टम में शामिल किया जाए।
श्रमिकों की स्थिति पर चिंता
सांसद सुदामा प्रसाद ने लोकसभा में कहा कि एफसीआई में कार्यरत श्रमिक नियमित कर्मचारी होने के बावजूद न्यूनतम गारंटीड मजदूरी से वंचित हैं। वर्तमान व्यवस्था के तहत, श्रमिकों को प्रति माह केवल 5000 से 10000 रुपये तक की मजदूरी प्राप्त होती है, जो कि जीवन यापन के लिए अपर्याप्त है। इसके अलावा, इन श्रमिकों के लिए कोई ठोस सेवा शर्तें भी निर्धारित नहीं की गई हैं।
सरकारी कमिटी की सिफारिश की याद दिलाई
सांसद ने अपने संबोधन में बताया कि जब ये श्रमिक ठेका प्रथा के अंतर्गत कार्यरत थे, तब खाद्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित विवेक मेहरोत्रा कमिटी ने वर्ष 2007 में इन श्रमिकों को डीपीएस सिस्टम में शामिल करने की सिफारिश की थी। सरकार ने इस सिफारिश को 1 अक्टूबर 2008 को पत्र जारी कर स्वीकार भी किया था। लेकिन 2011-12 में जब श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने गोदामों से ठेका प्रथा को समाप्त कर दिया, तब इन श्रमिकों को डीपीएस सिस्टम में समायोजित करने के बजाय ‘नो वर्क नो पे’ प्रणाली में डाल दिया गया। इस कारण अभी भी श्रमिकों को कोई मासिक गारंटी मजदूरी और सेवा शर्तों का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सांसद ने रखी प्रमुख मांगें
सांसद सुदामा प्रसाद ने सरकार से निम्नलिखित मांगें रखीं:
- एफसीआई में ‘नो वर्क नो पे’ प्रणाली को समाप्त कर डीपीएस सिस्टम में अपग्रेड किया जाए।
- ठेकेदारी प्रथा को पूरी तरह से खत्म किया जाए।
- एफसीआई श्रमिकों को चिकित्सा सुविधा प्रदान की जाए।
श्रमिकों की राहत के लिए सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार
सांसद ने सरकार से जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कार्रवाई करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि यदि इन मांगों को पूरा नहीं किया गया तो श्रमिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति और अधिक खराब हो सकती है। अब देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है।
(रिपोर्ट: DNTV India News)