नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने अवैध संपत्तियों के ध्वस्तीकरण को लेकर कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिससे “बुलडोजर न्याय” पर नियंत्रण और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह निर्णय खासतौर पर उन मामलों में लिया गया है, जहां बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के घरों और अन्य संपत्तियों को गिरा दिया जाता है।
मुख्य बिंदु:
न्यायिक प्रक्रिया का पालन: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी संपत्ति के ध्वस्तीकरण से पहले संबंधित व्यक्ति को कम से कम 15 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए। यह नोटिस उन संपत्तियों के मालिकों को कारण बताने और सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा।
पारदर्शिता सुनिश्चित करना: सर्वोच्च न्यायालय ने डिजिटल पोर्टल स्थापित करने का निर्देश दिया है, ताकि ध्वस्तीकरण प्रक्रिया पारदर्शी और सार्वजनिक हो सके। इस पोर्टल पर नोटिस, आदेश और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रहेगी।
मानवीय दृष्टिकोण: कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि ध्वस्तीकरण के दौरान महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा और पुनर्वास का विशेष ध्यान रखा जाएगा। किसी भी ध्वस्तीकरण आदेश को चुनौती देने के लिए कम से कम 15 दिनों का समय दिया जाएगा।
न्यायिक निरीक्षण: सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ध्वस्तीकरण आदेशों की निगरानी न्यायिक अधिकारियों द्वारा की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रक्रिया कानूनी और न्यायपूर्ण तरीके से की जा रही है।
न्यायालय का यह आदेश अवैध ध्वस्तीकरण की प्रथा को नियंत्रित करने और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।