ज्ञान की बात

अलग-अलग संस्कार और जीवन की सच्चाई

संसार में हर व्यक्ति अपने-अपने संस्कारों से प्रेरित होकर जीवन जीता है। किसी के संस्कार उत्तम होते हैं, किसी के सामान्य और किसी के नकारात्मक। यही संस्कार व्यक्ति के विचार, व्यवहार और कार्यों को दिशा देते हैं।

सही संगति और अच्छे संबंध यदि आपके संस्कार अच्छे हैं और जिनसे आपका मेल-जोल है उनके संस्कार भी श्रेष्ठ हैं, तो आपसी विचारों का सामंजस्य मित्रता का आधार बनता है। ऐसे संबंधों में सहयोग, ट्यूनिंग और अपनापन सहज ही विकसित होता है, जिससे जीवन सुखमय और आनंदमय बन जाता है। यही कारण है कि कभी-कभी बाहर का व्यक्ति भी हमें अपना लगने लगता है और वास्तविक सुख का कारण बनता है।

निकटता हमेशा अपनापन नहीं होती अक्सर यह भ्रम होता है कि घर-परिवार के लोग ही हमारे सबसे निकट और सच्चे हितैषी होते हैं। परंतु वास्तविकता इसके विपरीत भी हो सकती है। कभी-कभी अपने ही रिश्तेदार नकारात्मक संस्कारों के कारण उपेक्षा, दुख या हानि पहुँचा सकते हैं। ऐसे में सावधान रहना आवश्यक है और उनसे अधिक अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए।

जीवन की तुलना जैसे शरीर में उत्पन्न रोग निकट होने पर भी हमें कष्ट देते हैं, वैसे ही निकट संबंधी भी कभी हानिकारक हो सकते हैं। दूसरी ओर, जंगल में पाई जाने वाली औषधियां दूर होने पर भी हमारे लिए हितकारी सिद्ध होती हैं। यही जीवन का सिद्धांत है—अपनापन खून के रिश्तों से नहीं, बल्कि संस्कारों और विचारों की समानता से तय होता है।

निष्कर्ष इसलिए जीवन में उन्हीं से सुख और सहयोग की आशा रखें, जिनके विचार और संस्कार आपके अनुरूप हों। चाहे वे आपके परिवार से हों या बाहर से। यही सजगता आपको जीवन में अधिकतम सुख और संतुलन प्रदान करेगी।

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Published by
DNTV इंडिया NEWS