ब्रह्मविद्या विहंगम योग

मृत्यु के समय पश्चाताप व्यर्थ” संत कवीर | भावार्थ

।। बीजक शब्द ६६ ।।

का को रोऊँ गयल बहुतेरा , बहुतक मुवल फिरल नहि फेरा ॥2 ॥
जब हम रोया तुम संभारा , गर्म वास की बात विचारा ॥२ ॥
अब त रोया क्या त पाया , केहि कारण अब मोही रोदाया।॥३ ॥
कहै कबीर सुनहु नर लोई , काल के वशी परो मति कोई ॥४ ।।

शब्दार्थ ( काको ) किसको ( काल ) मन , निरंजन ।
पदार्थ ऐ मनुष्यो ! मैं किसके लिये रुदन करूँ क्योंकि काल के गाल में घनेरे जीव चले गये हैं । बहुतेरे मरे किन्तु वे पुनः फिर नहीं फिरे या चौरासी फिर कर वे अभी पुन : मनुष्य योनि नहीं आये । अथवा मेरे उपदेश द्वारा वे काल से फिर कर सदगुरु – शरण नहीं लिये।शाजव युवा अवस्था में तुम्हारी दशा देखकर मैं रोया एवं तुमको उपदेश किया , तव तुम मेरे उपदेश को नहीं माना एवं अपने को तुम नहीं सम्हारा । उस समय तुमने गर्भ – वास होने वाली वात अर्थात् कर्म भ्रम का ही विचार निश्चय किया।॥२ ॥ अब तुम मृत्युकाल में रोते हो , अब तुम रोकर क्या पाते हो ? अब तुम किस कारण से हम को रुलाते हो यानी तुम रोकर हमको भी रुलाते हो ॥३ ॥ श्री कबीर साहेब जी कहते हैं कि ऐ मनुष्यों । सुनिये तुम कोई कर्म करके काल के वशी न पड़ो अर्थात मेरे सत्य मार्ग से चलो ।

Message of Sant Kabir: Follow the true path in life, repentance at the time of death is futile”

भावार्थ – ऐ मनुष्यो ! युवा अवस्था में ही तुम मेरे उपदेश को ग्रहण कर काल के पाश से छूट जाओ , मृत्युकाल में रोकर और मुझे रुलाकर तुम क्या पाओगे ? यानी कुछ नहीं ।

यह रचना संत कबीर के अद्भुत विचारों को दर्शाती है, जिसमें वे मानव जीवन और मृत्यु के सत्य को स्पष्ट कर रहे हैं। आइए इसे गहराई से समझें:

संत कबीर साहेब का चित्र ऐतिहासिक रूप से या तो पारंपरिक भारतीय कला में प्रस्तुत किया गया है, या उनके भक्तों द्वारा उनकी दिव्यता और सादगी को दर्शाते हुए बनाया गया है। आमतौर पर उन्हें सफेद धोती और कुर्ता पहने, सिर पर पगड़ी या टोपी लगाए हुए दिखाया जाता है। उनकी छवि में अक्सर उनकी आध्यात्मिकता, शांति और गहन चिंतन को दर्शाने वाले भाव होते हैं। उनका व्यक्तित्व सरल जीवन और उच्च विचारों का प्रतीक माना जाता है।

मूल विचार:

  1. मृत्यु की अपरिहार्यता:
    कबीर साहब कहते हैं कि अनगिनत जीव काल के गाल में समा चुके हैं। मृत्यु एक अनिवार्य सत्य है और जो चला गया, वह लौटकर नहीं आता।
  2. जीवन का महत्व:
    युवा अवस्था में ही हमें सही मार्ग चुनना चाहिए और सद्गुरु के मार्गदर्शन में अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए।
  3. उपदेश की उपेक्षा का परिणाम:
    कबीर साहब इस बात को प्रकट करते हैं कि जब उन्होंने हमें संभालने का प्रयास किया, तब हमने उनकी बातों को नहीं माना। परिणामस्वरूप, अब मृत्यु के समय हम रोकर उन्हें भी दुखी कर रहे हैं।
  4. सत्य मार्ग का अनुसरण:
    वे मानव जाति से आग्रह करते हैं कि काल के वशीभूत होने से बचें और सत्य मार्ग अपनाएं। यह जीवन को बेहतर बनाने का एकमात्र उपाय है।

भावार्थ:

कबीर साहब के इस पद का सार यह है कि मानव को अपने जीवन की अहमियत समझनी चाहिए और समय रहते सही मार्ग पर चलना चाहिए। मृत्यु के समय पश्चाताप का कोई लाभ नहीं। सत्य मार्ग का अनुसरण कर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

Share
Published by
DNTV इंडिया NEWS

Recent Posts