आधुनिक जीवन की व्यस्तता में अक्सर लोग यह सोचते हैं कि हमने कोई पाप नहीं किया, फिर भी कष्ट क्यों मिल रहा है। इसी सवाल का उत्तर एक पुरानी कथा के माध्यम से मिलता है।
कथा के अनुसार, एक राजा ने ब्राह्मणों के लिए लंगर का आयोजन किया। खुले आंगन में रसोई चल रही थी। उसी समय एक चील अपने पंजे में जिंदा सांप लेकर महल के ऊपर से गुज़री। आत्मरक्षा में सांप ने जहर उगला और उसकी कुछ बूंदें पक रहे भोजन में गिर गईं। अनजाने में यह भोजन ब्राह्मणों को परोसा गया और उसके सेवन से उनकी मृत्यु हो गई।
अब प्रश्न उठा कि इस पाप का फल किसे मिलेगा?
- राजा को, जिसे कुछ पता नहीं था?
- रसोइये को, जिसने अनजाने में भोजन पकाया?
- चील को, जिसने सांप को पकड़ा?
- या फिर सांप को, जिसने आत्मरक्षा में विष छोड़ा?
यमराज भी उलझन में थे। लेकिन बाद में जब एक महिला ने ब्राह्मणों से कहा कि “राजा ब्राह्मणों को जहर देकर मार देता है,” तो यमराज ने निर्णय किया कि इस पाप का फल उस महिला के हिस्से में जाएगा। कारण यह था कि हत्या की घटना से न राजा, न रसोइये, न सांप और न चील को आनंद मिला, लेकिन उस महिला को दूसरे की बुराई करने और दोषारोपण करने में आनंद अवश्य मिला।
यमराज का संदेश स्पष्ट है—
“जब भी कोई व्यक्ति किसी के पाप की बुराई बुरे भाव से करता है, तो उस पाप का अंश उसके खाते में जुड़ जाता है।”
शिक्षा
- नकारात्मक सोच और बुराई से बचें।
- हमारे शब्द, विचार और भाव ही कर्म हैं।
- ईश्वर क्षमा कर सकते हैं, पर कर्म कभी नहीं।
- जैसे बछड़ा सौ गायों में अपनी माँ को ढूँढ लेता है, वैसे ही हर कर्म अपने कर्ता तक पहुँच ही जाता है।