मृत्युलोक में हर प्राणी अकेला जन्म लेता है और अकेला ही मृत्यु को प्राप्त होता है। धन, वैभव, परिवार और मित्र — सब यहीं छूट जाते हैं। शरीर अग्नि के हवाले हो जाता है, लेकिन मनुष्य के पाप और पुण्य उसके साथ जाते हैं। धर्म ही उसका सच्चा साथी बनता है।
शास्त्रों के अनुसार, शरीर नश्वर है, किंतु गुण और धर्म अमर हैं। जिसके भीतर धर्म और सद्गुण जीवित हैं, वही वास्तव में जीवित है।
पाप और पुण्य का विधान
वेदों में जिन कर्मों का वर्णन धर्मरूप में किया गया है, वे पुण्य कहलाते हैं, और उनके विपरीत कर्म पाप। एक क्षण का पुण्य या पाप भी सहस्त्रों वर्षों तक फल दे सकता है।
मनुष्य के कर्मों के 14 साक्षी
धर्मग्रंथों में बताया गया है कि मनुष्य के हर कर्म के चौदह साक्षी होते हैं —
सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, इन्द्रियां, चन्द्रमा, संध्या, रात्रि, दिन, दिशाएं, जल, पृथ्वी, काल और धर्म।
ये सभी मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों को देखते और प्रमाणित करते हैं। उनसे कोई भी छिप नहीं सकता।
कर्म और देह का संबंध
जो कर्म इस जीवन में पूर्ण नहीं हो पाते, उनका फल जीव अगले जन्मों में भोगता है। स्वर्ग, नरक या पृथ्वी — हर लोक में कर्म का हिसाब चलता रहता है।
पाप कर्मों का भोग जीव को वृक्ष, कीट, पशु या पक्षी की योनि में भी कराना पड़ता है। इन योनियों में जीव अनेक प्रकार के दुख सहता है — सर्दी-गर्मी, भूख, पीड़ा और अपमान तक।
धर्मशास्त्र स्पष्ट कहते हैं कि कर्म से ही देह मिलती है और कर्म से ही मुक्ति भी।
इसलिए मनुष्य को सदैव धर्म और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए, क्योंकि धर्म ही उसका शाश्वत साथी है।
꧁ जय श्री राधे ꧂

