नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में आपातकाल के 50 वर्ष पूर्ण होने पर "आपातकाल: काला अध्याय" पुस्तक का विमोचन करते हुए जेपी आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेता
नई दिल्ली, 23 जून 2025 आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर 25 जून 2025 को राजधानी दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब (एनेक्सी), रफी मार्ग में एक विशेष जेपी सेनानी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। यह आयोजन संपूर्ण क्रांति राष्ट्रीय मंच और लोकनायक जयप्रकाश अंतरराष्ट्रीय अध्ययन विकास केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में किया जाएगा।
जेपी आंदोलन की पृष्ठभूमि ज्ञात हो कि 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल घोषित किया गया था। इससे पूर्व बिहार के छात्रों के स्वतःस्फूर्त आंदोलन ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया था, जिसे इतिहास में जेपी आंदोलन और संपूर्ण क्रांति के नाम से जाना गया। इस आपातकाल के दौरान लाखों लोकतंत्र सेनानियों को जेल में डाल दिया गया था, जिनमें से आज भी कई सेनानी उपेक्षित जीवन जी रहे हैं।
सम्मेलन की प्रमुख माँगें इस सम्मेलन में जेपी सेनानियों के लिए केंद्र सरकार से दो प्रमुख माँगें की जा रही हैं:
सभी जेपी सेनानियों और लोकतंत्र सेनानियों को समान पेंशन एवं सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
दिल्ली में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम पर एक अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय एवं शोध संस्थान की स्थापना की जाए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ संपूर्ण क्रांति के इतिहास से परिचित हो सकें।
कार्यक्रम की जानकारी इस प्रेस सम्मेलन में जानकारी देते हुए पूर्व सांसद एवं मंच के कार्यकारी अध्यक्ष सूरज मंडल, राष्ट्रीय महासचिव अभय सिन्हा, सह संयोजक राकेश जैन सरधना, दिल्ली प्रभारी सीए दीनदयाल अग्रवाल और सामाजिक कार्यकर्ता सचिन पाटिल ने बताया कि कार्यक्रम में देशभर से बड़ी संख्या में लोकतंत्र सेनानी भाग लेंगे।
इस अवसर पर कई विशिष्ट अतिथि कार्यक्रम को संबोधित करेंगे, जिनमें शामिल हैं:
भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक सूर्यकांत केलकर
समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर
पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्य नारायण जटिया
वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु रंजन
पूर्व राज्यसभा सांसद केसी त्यागी
लोकतंत्र की स्मृति का दस्तावेज बनेगा यह आयोजन इस सम्मेलन का उद्देश्य न केवल जेपी सेनानियों के प्रति सम्मान प्रकट करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि लोकतंत्र की रक्षा में लगे सेनानियों को समाज और सरकार द्वारा उचित मान्यता और सहयोग मिले। साथ ही यह आयोजन आपातकाल जैसे काले अध्याय की स्मृति को जीवित रखते हुए लोकतंत्र की अहमियत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का एक माध्यम बनेगा।