Importance of service to Sadguru and selfless devotion
यह संसार निरंतर परिवर्तनशील है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है – जो आज है, वह कल नहीं रहेगा, और जो कल था, वह आज नहीं रहा। जीवन और मृत्यु का यह चक्र अनादि काल से चला आ रहा है। लेकिन इस परिवर्तनशील संसार में भी मानव अपने जीवन के परम लक्ष्य – प्रभु प्राप्ति – को प्राप्त कर सकता है।
सद्गुरु की कृपा से ही जीव इस संसार से छूटने का मार्ग जान सकता है। जब ईश्वर की कृपा होती है, तब हमें सद्गुरु की प्राप्ति होती है, और वही हमें ब्रह्मविद्या का वास्तविक ज्ञान प्रदान करते हैं। विहंगम योग के माध्यम से साधक अपने अंदर छिपे रहस्यों को जान सकता है और आत्मा की शुद्धि कर सकता है।
भक्ति में किसी प्रकार की इच्छा या स्वार्थ नहीं होना चाहिए। जब तक मन में कामनाएँ बनी रहती हैं, तब तक सच्ची भक्ति संभव नहीं होती। सद्गुरु देव कहते हैं:
“अनन्य भक्त प्रभु शरण में, प्रभु से मुक्ति न माँग।
आश वासना जग नहीं, भक्ति निरंतर लाग।”
इसका अर्थ है कि जो सच्चा भक्त होता है, वह प्रभु से कुछ नहीं माँगता, क्योंकि उसे प्रभु ही मिल गए हैं। प्रभु से बढ़कर कोई वस्तु नहीं है, जिसे माँगा जाए। जब हम पूरी निष्ठा और समर्पण से प्रभु के चरणों में शरणागति प्राप्त कर लेते हैं, तब हमें किसी और चीज़ की आवश्यकता ही नहीं रहती।
भक्ति का अर्थ केवल प्रार्थना करना या मंत्र जाप करना नहीं है, बल्कि सद्गुरु सेवा ही सच्ची भक्ति का रूप है। जो शिष्य पूरे मन से सद्गुरु की सेवा करता है, वह स्वयं ही आत्मिक उन्नति कर लेता है। इसलिए कहा गया है:
“सेवा जीत शिष्य गुरु प्यारा।”
सच्चा शिष्य वही है जो सेवा में जीत हासिल करता है। उसे किसी और चीज़ की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि सद्गुरु सेवा से ही सबकुछ स्वतः प्राप्त हो जाता है।
सद्गुरु हमें संसार में फँसाने नहीं, बल्कि हमें संसार से मुक्त करने के लिए आते हैं। उनका उद्देश्य हमें अमरलोक तक पहुँचाना है, अर्थात् प्रभु से साक्षात्कार कराना। लेकिन जब तक हमारा मन संसार की इच्छाओं और कामनाओं में उलझा रहेगा, तब तक हम आध्यात्मिक मार्ग पर आगे नहीं बढ़ पाएंगे।
जो भक्त पूर्ण समर्पण के साथ भक्ति करता है, उसका योग-क्षेम (सभी आवश्यकताओं की पूर्ति) स्वतः होता रहता है। उसे किसी भी वस्तु की कमी नहीं रहती, क्योंकि सद्गुरु स्वयं उसकी देखभाल करते हैं।
हमें कभी भी भक्ति मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। सच्चा भक्त वही है जो हर परिस्थिति में अपने भक्ति व्रत को निभाता है और सद्गुरु की आज्ञा, नियम और मर्यादा का पालन करता है।
सद्गुरु ही सच्चे परमात्मा हैं, और उन्हीं की शरण में रहकर जीवन का असली उद्देश्य पूरा होता है। हमें सदैव सद्गुरु सेवा और निष्काम भक्ति में लगे रहना चाहिए, क्योंकि यही आत्मा के कल्याण का एकमात्र मार्ग है।