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भागवत कथा

GyanGanga: प्रेम है और धर्म है, राम आदि और राम ही अन्त हैं, कैसे पुकारू तोहे राम कहें या श्री राम, यही सवाल हृदय में है …

 राम भारत के इष्ट हैं, आत्मा हैं, आदर्श हैं, पुरोधा हैं, संस्कृति के वाहक हैं। राम भारत के पिता हैं। राम निरीह में हैं, राम हमारे आसपास हैं, वह हर एक चीज राम है जिसमें गति है, प्राण है, सत्य है, संयम है, प्रेम है और धर्म है। राम आदि और राम ही अन्त हैं।

 भगवान श्री राम के आगमन से पूरा भारत राममय हो गया है। सम्पूर्ण भारत में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण हो रहा है। किसी का कहना है कि इस उत्सव को इस तरह से मनायेंगे, कोई व्रत, पूजा, शंखनाद, दीपोत्सव की खास तैयारी कर रहा है।

और एक तरफ भारत का मूढ़-मति है। राम, जय श्री राम, सियाराम तक में अंतर करते हैं।

जिस तरह भगवान शिव भारत के कुल देवता हैं उसी तरह मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम भारत के इष्टदेव हैं। भारतीय संस्कृति गुण के आधार पर व्यक्ति को सम्मान देती है। रावण विद्वान और ब्राह्मण था किंतु गुण हीनता के कारण वह राक्षस बन गया।

                                                        हारिये न हिम्मत विसारिये न राम ।                                                           तू क्यों सोचे बंदे सब की सोचे राम।।

रामलला के आने से भारत में कुछ सकारात्मक और बड़े परिवर्तनों से हम रूबरू होंगे। यह परिवर्तन भारत की विश्वस्तर पर मान्यता, अर्थव्यवस्था, इसरो और DRDO में दिखना भी आरम्भ हो गया है। सामाजिक रूप से बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है। धर्म की आलोचना करने वाले नास्तिकों की संख्या में भारी कमी आयेगी।

“बढे पूत पिताके धरमे” पिता के धर्म से पुत्र विकास करता है, पिता की संपत्ति और पुण्य पुत्र को भी मिलते हैं। तब क्या उस पिता के पाप का भागीदार पुत्र को नहीं बनना पड़ेगा?

राम की संस्कृति भारत के सीमा पार कर सुदूर इंडोनेशिया के जावा, सुमात्रा, वियतनाम, कोरिया और मलेशिया तक फैली है। राम वह नाम है जो मनुष्य क्या बन्दर, भालू, गिलहरी, चिड़िया और कुत्ते तक को आश्रय दिया। शबरी, निषादराज, गिद्धराज जटायु, सुग्रीव, ऋषि, मुनि आदि सभी को अपना बना कर उत्तर को दक्षिण से बांध दिया। सेना पर शून्य खर्च कर त्रिलोक विजेता रावण को उसके घर लंका में पराजित किया। 

ऐसे राम की आलोचना कोई मूढ़  ही कर सकता है। राम को पहले  जान लीजिए फिर आलोचना करिये।

                                                प्रसन्नमुखरागं तं स्मितपूर्वाभिभाषिणम्।                                                                                                       मूर्तिमन्तम् अमन्यन्त विश्वासम् अनुजीविनः॥

अयोध्या के राजा राम का मुख सदा प्रसन्न रहते थे,और वे सबसे मुस्कुराकर बोलते थे अतः उनके सेवक उन्हें साक्षात् विश्वास का मूर्तिमान् रूप मानते थे।

                                                        सियाराम मय सब जग जानी ।                                                                                                                        करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।