ज्ञान की बात

संकट और दुःख: सुख-समृद्धि के अग्रदूत

फाल्गुन शुक्लपक्ष चतुर्दशी, 2081

“संकट और आपत्ति से कोई नहीं बच सकता, परंतु जो धैर्य और विवेक रखते हैं, वे इतिहास में अमर हो जाते हैं।”

संसार का यह शाश्वत नियम है कि सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हर व्यक्ति अपने जीवन में संघर्षों और कठिनाइयों से गुजरता है। यह न केवल सामान्य जनों की सच्चाई है, बल्कि इतिहास के महान सम्राटों, ऋषियों और पराक्रमी पुरुषों की जीवन गाथा भी संकटों से भरी रही है। राजा हरिश्चंद्र, महाराज शिवि, नल, मोरध्वज और पांडवों जैसे असंख्य महापुरुषों ने अपने जीवन में अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना किया, परंतु उनके धैर्य, साहस और विवेक ने उन्हें अमर बना दिया।

जो व्यक्ति विपत्ति के समय धैर्य खो देते हैं, वे स्वयं को कमजोर बना लेते हैं, जबकि जो लोग विपत्तियों का डटकर सामना करते हैं, वे भविष्य में सफलता और यश प्राप्त करते हैं। महान व्यक्तित्व वही होते हैं जो संकटों में स्वयं को और अधिक सशक्त बनाते हैं और अपने आदर्शों से संसार को दिशा प्रदान करते हैं।

“संकट वास्तविक सुख और कल्याण के अग्रदूत होते हैं।”

दुःख और कष्ट के समय हताश होने के बजाय, उसे एक नए अवसर के रूप में स्वीकार करना चाहिए। जैसे अंधकार में दीप जलाने से प्रकाश बढ़ता है, वैसे ही संकट के समय धैर्य और आत्मविश्वास से कार्य करने पर सफलता निश्चित होती है। संसार के वे वीर पुरुष, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ लिया, वे ही इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हुए।

संकट और दुःख को देखकर भयभीत होना ठीक वैसा ही है जैसे किसी रोगी का अपने उपचारकर्ता डॉक्टर से डरना। दुःख के बाद सुख और संकट के बाद सुविधा आना प्रकृति का अटल नियम है। हमें बस इतना समझना है कि संकट आने पर धैर्य बनाए रखें, साहस न खोएं और अपनी आत्मशक्ति को जाग्रत करें। यही दृष्टिकोण हमें वास्तविक सफलता और आत्मिक शांति प्रदान कर सकता है।

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Published by
DNTV इंडिया NEWS

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