दिनांक: 25 फरवरी 2025
स्थान: महर्षि सदाफलदेव आश्रम, कटार, डेहरी, रोहतास, बिहार
महर्षि सदाफलदेव आश्रम, कटार में प्रथम परम्परा सद्गुरु आचार्य श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज की 106वीं पावन जन्म-जयन्ती के शुभ अवसर पर भव्य आध्यात्मिक समारोह का आयोजन किया गया। यह आयोजन न केवल श्रद्धा और भक्ति का संगम था, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान और साधना की महत्ता को भी उजागर करने वाला सिद्ध हुआ।
सद्गुरु श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज: आध्यात्मिकता के प्रकाश स्तंभ
सद्गुरु श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज का परम पावन प्रादुर्भाव फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी, महाशिवरात्रि (शुक्रवार), सन् 1919 में हुआ था। आगे चलकर माघ शुक्ल पंचमी, सन् 1954 को सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज ने अपने शरीर-परित्याग से पूर्व उन्हें ब्रह्मविद्या विहंगम योग के प्रथम परम्परा सद्गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया।
सद्गुरु श्री धर्मचन्द्रदेव जी महाराज वैदिक वाङ्मय, दर्शन और संत-साहित्य के महान विद्वान थे। उनकी सशक्त लेखनी से रचित ‘स्वर्वेद-भाष्य’ (प्रथम एवं द्वितीय खंड) जैसे अद्वितीय आध्यात्मिक ग्रंथ आज भी सत्यान्वेषियों के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्होंने विहंगम योग के सिद्धांत और साधना को एक स्पष्ट आधार प्रदान किया, जिससे आज लाखों साधक लाभान्वित हो रहे हैं।
संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज की दिव्यवाणी
समारोह के सायंकालीन सत्र में संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज ने संगीतमय स्वर्वेद कथामृत के रूप में अपनी दिव्यवाणी प्रस्तुत की। उन्होंने अपने ओजस्वी प्रवचन में बताया कि स्वर्वेद केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और मुक्ति का स्रोत है। उन्होंने मानव मात्र के कल्याणार्थ स्वर्वेद को जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया है।
संत प्रवर विज्ञानदेव जी महाराज की वाणी गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को सरल भाषा में उजागर करने की विलक्षण क्षमता रखती है। उनकी शिक्षाएं न केवल भक्तों को आध्यात्मिक शांति प्रदान कर रही हैं, बल्कि सत्य का स्पष्ट ज्ञान देकर उनके जीवन को भी निर्मल बना रही हैं।
समारोह की विशेषताएँ:
✅ आध्यात्मिक सत्संग एवं स्वर्वेद कथामृत
✅ भक्ति संगीत और साधना मार्गदर्शन
✅ विहंगम योग के सिद्धांतों का व्यापक विवेचन
✅ श्रद्धालुओं को दिव्य प्रेरणा और आत्मिक ऊर्जा का संचार
निष्कर्ष
यह भव्य समारोह भक्ति, ज्ञान और साधना का संगम बनकर उभरा, जिसमें श्रद्धालुओं ने अपने सतगुरु के प्रति अपार श्रद्धा अर्पित की। इस आयोजन ने यह संदेश दिया कि सत्य, सेवा और साधना ही आत्मिक उन्नति का मूल मार्ग है।