Covid-19 ) विधानसभा की वर्चुअल बैठक में भाकपा माले विधायक सुदामा प्रसाद ने 3 महीने के अंदर सबके वैक्सीनेशन की मांग उठाई।

कोरोना महामारी के दौर में मारे गए सभी लोगों की मौत का संज्ञान लेते हुए पीड़ित परिजनों को तत्काल 4 लाख मुआवजा दे सरकार व नौकरशाही के हवाले करने की बजाय 6 माह के लिए पंचायतों के कार्यकाल का विस्तार हो।
◆विधायकों की प्रतिष्ठा व भूमिका पुनर्बहाल करो*
बिहार विधानसभा की आज हुई वर्चुअल बैठक में भाकपा माले सुदामा प्रसाद ने मजबूती से 3 महीने के भीतर सभी लोगों के कोविड वैक्सीनेशन की मांग उठाई.
भाकपा-माले तरारी विधायक व पुस्कालय समिति के सभापति सुदामा प्रसाद ने कहा कि आज जब यह बात स्थापित हो चुकी है कि बिना वैक्सीनेशन के हम इस महामारी का मुकाबला नहीं कर सकते तब सरकार को कोई देरी नहीं करनी चाहिए. लेकिन यह बहुत दुखद है कि वैक्सीनेशन के मामले में हमारा राज्य आज पूरे हिंदुस्तान में सबसे निचले पायदान पर है. हमने बार-बार मांग की है कि पंचायत स्तर पर टीका केंद्रों का विस्तार किया जाए और जैसे भी संभव हो पर्याप्त मात्रा में टीका उपलब्ध कराया जाए, लेकिन इस दिशा में सरकार का प्रयास बेहद ही कमजोर है।
माले विधायक दल ने यह भी याद दिलाया कि विगत विधानसभा चुनाव के समय प्रधान मंत्री महोदय ने मुफ्त टीका का वादा किया था. लेकिन अब वे इससे मुकर रहे हैं और टीकाकरण का पूरा बोझ राज्य पर डाल दिया है. हम उनसे वादा पूरा करने की मांग करते हैं. इसी तरह, टीकाकरण के लिए केन्द्र सरकार के बजट में आवंटित 35000 करोड़ की राशि में अपने हिस्से के लिए भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाया जाए।
माले विधायक सुदामा प्रसाद ने कहा कि इस दौरान मारे गए सभी लोगों को कोरोना के कारण हुई मौत मानकर सरकार तमाम लोगों को 4 लाख की  तयशुदा अनुग्रह राशि प्रदान करे और साथ ही अनाथ हुए बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेवारी ले।
उन्होंने पंचायतों के अधिकारों को 6 माह बढ़ाने की भी मांग की. कहा कि पंचायतों के विभिन्न जनप्रतिनिधि जनता से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं, इसलिए हमारी मांग है कि कोविड से राहत बचाव अभियान में उनके अनुभवों का इस्तेमाल किया जाए. लेकिन हमें जानकारी मिल रही है कि सरकार पंचायतों के अधिकार नौकरशाही के हवाले करने पर तुली हुई है. यह फैसला पूरी तरह से गलत व अलोकतांत्रिक है. पंचायतों चुनाव को स्थगित करके 6 माह तक के लिए उसके कार्यकाल में बढ़ोतरी करना ही अभी सबसे सटीक कदम होगा।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 और स्वास्थ्य व्यवस्था की घोर असफलता से पैदा हुई भीषण मानवीय त्रासदी से मिलजुलकर निपटने की बजाए जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति भाजपा-जदयू सरकार का गैरलोकतांत्रिक व असिहष्णु रवैया और उनके ऊपर नौकरशाहों का बढ़ता दबदबा बेहद चिंताजनक है।
 आपदा में अवसर’ तलाशने वाली सरकार आज सहभगिता को खत्म कर पूरी वैधानिक व्यवस्था को ही अंदर से खोखला कर देने पर तुले हैं. दुर्भाग्य यह है कि इसकी शुरुआत विधानसभा के अंदर से ही हुई थी जब विपक्ष के विधायकों की बेरहमी से पिटाई हुई थी।
उक्त कांड ने  विधायकों की प्रतिष्ठा को धूमिल किया. सरकार ने बाजाप्ता अस्पतालों व सामुदायिक किचेन के निरीक्षण से भी उन्हें मना कर दिया है,जबकि इस करोना काल में गरीबों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गयी ऐसी स्थिति में सामुदायिक किचेन को पंचायत स्तर पर चलाने की सख्त जरूरत है जबकि हमारी पार्टी के सारे विधायक पहले ही दिन से कोविड पीड़ितों की सेवा में जी-जान से जुटे हुए हैं और सरकार से बारम्बार सहयोग की अपील की है ताकि हम सब इस त्रासदी का सफलतापूर्वक सामना कर सकें. लेकिन सरकार की मंशा कुछ और ही दिख रही है।
यह विधानसभा की संवैधानिक जिम्मेवारी है कि विधायकों की खोई प्रतिष्ठा व भूमिका को पुनः स्थापित करें, ताकि वे इस भीषण त्रासदी के दौर में खुलकर जनता की सेवा कर सकें और सरकारी व्यवस्था की कमियों को उजागर कर सकें.
माले विधायकों ने विधायकों/पार्षदों से बिना किसी बातचीत और बेहद अलोकतांत्रिक तरीके से वित्तीय वर्ष 2021-22 के क्षेत्र विकास योजना मद से 2-2 करोड़ की राशि अधिग्रहित कर लेने के फैसले के खिलाफ इस राशि के कम से कम 50 प्रतिशत हिस्से को संबंधित जनप्रतिनिधियों के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत करने में खर्च करने और राशि आवंटन की पूरी प्रक्रिया में विधायकों/पार्षदों की सहभागिता व उनकी सलाह को सर्वोपरि मानने की भी मांग की।
Scroll to Top