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भागवत कथा

Covid-19) आज का अमृत।।भाव से गोपाल मिलते है।।

एक ब्राहम्ण था जो भगवान को भोग लगाये बिना खुद कभी भी भोजन नहीं करता था। 
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हर दिन पहले गोपाल जी के लिए खुद प्रसाद बनाता था और भोग लगा कर फिर स्वयं व उसकी पत्नी व एक छोटा बेटा था यह तीनों ही गोपाल जी का प्रसाद पाते थे। 
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बेटा पिता जी को हर रोज ठाकुर जी की सेवा और उनको भोग आदि लगाने की पूरी क्रिया को बड़े ही मनोयोग से देखता था। 
और पिता जी को यह भी देखता था कि वह किस प्रकार से गोपाल जी को निवेदन करते हैं कि लाला प्रसाद पाओ और पर्दा लगा कर बाहर आ जाते हैं।
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एक दिन ब्राहम्ण को किसी काम से शहर की तरफ पत्नी के साथ जाना था सो उसने अपने बेटे से कहा कि आज तुम ठाकुर जी का ख्याल रखना और जैसे भी हो ठाकुर जी को कुछ बना कर खिला देना। 
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बेटा बोला कि ठीक है पिता जी मैं जैसा आप कह रहे हैं वेसा ही करूंगा। माता पिता शहर की तरफ चले गये। 
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बेटे ने कभी कुछ न बनाया न उसे कुछ बनाना आता है। 
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उसने जल्दी-जल्दी से स्नान आदि करके दाल और चाबल मिला कर कुछ कच्ची सब्जी उसमें डाल कर अंगीठी पर बिठा दिया और ठाकुर जी को स्नान करा कर… 
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पौशाक आदि बदल कर आरती करके फिर बर्तन से गरम-गरम खिचड़ी निकाली और ठाकुर जी के सामने एक थाली में सजा कर परोस दी और पर्दा लगा दिया। 
अब वह कुछ देर बाद बार-बार जाकर पर्दा हटा कर देखता कि गोपाल जी खा रहे हैं या नहीं मगर वह देखता है कि गोपाल जी ने तो उसकी बनाई हुई खीचड़ी को छुआ तक नहीं.. 
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प्रसाद को काफी देर देखने के वाद छोटे से बच्चे को बहुत गुस्सा आया और वह गोपाल जी से वोला कि पिता जी खिलाते हैं सो खा लेते हो क्यों कि वह स्वादिष्ट व्यंजन जो बनाते हैं। 
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आज मैंने बनाया है मुझे खाना बनाना आता नहीं है और मैंने बेकार सा भोजन बनाया है इस लिये नहीं खा रहे हो.. 
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बालक ने गोपाल जी से काफी बिनती की कि आज जैसा भी बना है खा लो मुझे भी भूख लगी है तुम खा लो तो मैं भी प्रसाद पांऊगा। 
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मगर गोपाल जी तो उसकी सुन ही नहीं रहे थे। 
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जब उस बच्चे का धैर्य जबाव दे गया और उससे रहा नहीं गया तो वह बाहर से एक बड़ा सा सोटा लेकर आ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि खाते हो या अभी इस सोटे से लगा दूं दो चार। 
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यह कह कर वह फिर पर्दा लगा कर बाहर जाकर बैठ जाता है कि शायद इस बार गोपाल जी खा लेंगे.. 
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अबकी वार वह फिर झांक कर देखता है कि उसके द्वारा परोसी गई सारी खिचड़ी तो गोपाल जी खा गये है। 
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मगर अब एक समस्या यह हो गयी कि अब सारी खिचड़ी तो गोपाल जी खा गये अब वह क्या खायेगा व माता पिता को क्या खाने को देगा.. 
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ऐसा मन में विचार लिए वह थाली में जो थोड़ी बहुत खिचड़ी लगी थी, उसी को किसी तरह से चाट कर खा गया और फिर वहीं पर सो गया। 
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जब शाम को माता पिता हारे थके घर वापस आये तो उन्होंने बच्चे को उठाया कि बेटा आज क्या बनाया था गोपाल जी के लिए। 
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बेटा बोला पिता जी मैंने वैसे ही किया जैसे आप हर रोज पूजा सेवा करते हैं मगर आज गोपाल ने मेरी बनाई सारी की सारी खिचड़ी खा ली मैं भी भूखा रह गया। 
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पिता को अपने बेटे की बात पर विश्वास नहीं हुआ। 
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फिर पिता ने बेटे से कहा कि हमें बड़ी जोर से भूख लगी है गोपाल जी का भोग प्रसाद हमें भी तो दो हम भी कुछ खा लें सुबह से कुछ खाया भी नहीं है। 
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ऐसा सुन कर बच्चा रोने लगा कि पिता जी आज गोपाल ने मेरे लिए भी कुछ नहीं छोड़ा, मैं भी भूखा रह गया कुछ भी नहीं खा पाया.. 
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जो थाली में लगा रह गया था वही खाया और मुझे नींद आ गयी और मैं सो गया। 
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ब्राहम्ण ने और उनकी पत्नी ने पहले तो सोचा कि शायद यह कुछ बना ही नहीं पाया होगा.. 
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फिर जब उन्होंने थाली की तरफ देखा तो लगा कि कुछ बनाया तो है मगर शायद खुद ही खा कर सो गया होगा और हमसे झूठ बोल रहा है।
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जब बार-बार ब्राहम्ण ने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं इतने वर्षों से रोजाना नाना प्रकार के व्यंजन बना कर गोपाल जी के सामने रखता हूँ …
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गोपाल जी ने कभी भी मेरी थाली से एक तिनका भी नहीं खाया आज पुत्र के हाथ से गोपाल ने खा लिया। 
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ब्राहम्ण को विश्वास नहीं हुआ ब्राहम्ण ने देखने के लिए पर्दा हटाया तो देखा कि गोपाल के मुख में वह खिचड़ी लगी हुई है… 
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तब जब पुत्र से पूरी घटना सुनी तो ब्राहम्ण खुशी से पागल हो गया कि मैं न सही मैरे पुत्र ने तो साक्षात गोपाल को पा लिया है।
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आशय यह है कि हमारी जो पूजा सेवा है भोग राग है यह सब भाव की है मन में जो भाव रखता है उसे भगवान निश्चय ही किसी न किसी रूप में मिल ही जाते हैं।