Covid-19 ) सत्संग और अध्यात्म सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग / सत्संग जीवन में लाती है सकारात्मक ऊर्जा। राजीव रंजन प्रसाद

20 मई को जीकेसी के सौजन्य से प्रार्थना एवं सत्संग का आयोजन
पटना, 19 मई ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) कला संस्कृति प्रकोष्ठ के सौजन्य से आगामी 20 मई को प्रार्थना एवं सत्संग का आयोजन किया जा रहा है।
  जीकेसी कला संस्कृति प्रकोष्ठ की सचिव, कृष्णा कलायन कला केंद्र की निदेशक और कार्यक्रम की संयोजक श्रीमती श्वेता सुमन ने बताया कि जीकेसी कला संस्कृति प्रकोष्ठ की ओर से कृष्णा कलायन कला केंद्र के संयोजन में “द आर्ट ऑफ लिविंग “के सानिध्य में “लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु” के उद्देश्य से प्रार्थना एवं सत्संग का आयोजन 20 मई संध्या सात बजे से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में वैचारिक समृद्धि के लिए आर्ट ऑफ लिविंग की वरिष्ठ शिक्षिका संगीता सिन्हा जी द्वारा गुरुजी के मार्गदर्शन एवं सकारात्मक जीवन उपयोगी अनुकरणीय बातों को बताया जायेगा। कार्यक्रम में पल्लव हलधर जी के द्वारा सत्संग की प्रस्तुति होगी।
जीकेसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने बताया कि सत्संग अध्यात्म और समाज सनातन संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।सत्संग यानी ईश्वर के संगत और सानिध्य में रहना।जीवन में सत्संग से जुड़ने वाले व्यक्तियों के जीवन में निरंतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है,आप समभाव में रहते हुए संत ज्ञान से प्रेरित होकर लोक कल्याण के पथ पर सदैव अग्रसर रहते है, वैचारिक समृद्धि हमें संवेदनशील बनाता है और जीवन उपयोगी सूक्ष्म बातों को सीखते एवं अनुकरण करते हुए हम जीवन को अपने साथ साथ दूसरों के लिए भी उपयोगी बनाते है, जो एक अच्छे परिवार,समाज एवं आदर्श राष्ट्र के सृजन में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
जीकेसी की प्रबंध न्यासी श्रीमती  रंजन ने बताया कि महिलाओं के जीवन में निरंतर कई जिम्मेदारियां होती है ऐसे में आवश्यक है उनका शारीर और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो जिसमे सत्संग और ध्यान  एक मत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।स्वस्थ मन और शरीर से वे एकसाथ कई जिम्मेदारियों का निर्वहन कर पाएंगी …महिलाएं विशेष रूप से इसे आत्मसात करें।
   जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष देव कुमार लाल ने कहा कि हमारे जीवन में सत्संग का बहुत ही महत्व है। सत्संग करने से जीवन में प्रतिदिन निखार आता चला जाता है।जीवन में निरंकार की अनुभूति से जीवन में सकारात्मक भावों का संचार होता है। परमात्मा का ज्ञान होने पर ही जीवन में सुख शांति निंरतर बनी रहती है।
  श्वेता सुमन ने बताया कि सत्संग के माध्यम से आप ईश्वर से जुड़ते हैं और आध्यात्मिक चेतना के संचार से वैचारिक समृद्धि आती है,आप रचनात्मक रहते हुए प्रगतिशील रहते हैं ,नकारात्मक एवं विचारों का कुप्रभाव आपपर नही पड़ता, आप सुकर्मी होते हैं और निष्ठा से सभी उद्देश्यों को प्राप्त कर पाते हैं और यह एक कर्मठ और प्रगतिशील जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है,जिससे आप खुद सकारात्मक रहते हुए दुसरों को भी प्रेरित करने में सफल हो पाते हैं।

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