गोपियां कहती हैं यदि मेरे लिए ठाकुर को थोड़ा सा भी श्रम उठाना पड़े तो हमारी भक्ति व्यर्थ है।
इसीलिए भगवान से कुछ ना मांगो। ना मांगने से भगवान तुम्हारे ऋणी होंगे। गोपियों ने भगवान से कुछ नहीं मांगा था। उनकी भक्ति सर्वदा निष्काम रही है।
गोपी गीत मे भी वे भगवान से कहती हैं–” हम तो आपकी निशुल्क क्षुद्र दासियां हैं, अर्थात निष्काम भाव से सेवा करने वाली दासियां हैं।”
इसी तरह कुरुक्षेत्र में जब गोपियां कन्हैया से मिलती हैं तो वहां भी कुछ नहीं मांगती। वे तो केवल इतनी इच्छा करती है कि संसार रूपी कुएं में गिरे हुए को उसमें से बाहर निकलने के लिए अवलंबन रूप में आपके चरण कमल हमारे हृदय में सदा बसे रहें।
एक सखी उद्धव से पूछती है कि–” तुम किस का संदेश लेकर आए हो? कृष्ण का? वह तो यहां पर उपस्थित हैं।”
लोग कहते हैं कृष्ण मथुरा गए हुए हैं। यह बात गलत है। मेरे ठाकुर जी हमेशा मेरे साथ ही हैं। उनके साथ हमारा 24 घंटों का सहयोग है।
गोपियों का प्रेम शुद्ध है। जब भी भगवान का स्मरण करती हैं तो ठाकुर जी को प्रकट होना पड़ता ही है। गोपियों की निष्काम भक्ति में इतनी शक्ति है।
भगवान उद्धव से कहते हैं–” उद्धव मेरी गोपियां मुझ में तन्मय चित्र वाली हैं। गोपियों का आदर्श आंख के सामने रखो, और भगवान की भक्ति करो।
सुदामा की निष्काम भक्ति को याद कर प्रभु की भक्ति करो। सुदामा की भक्ति भी निष्काम थी।
तुम अपना सर्वस्व भगवान को अर्पण करो। ऐसा करने पर भगवान भी अपना सर्वस्व हमें देंगे।
निष्काम भक्ति ही भगवान का विषय है।
निष्काम भक्ति ही श्रेष्ठ है। निष्काम भक्ति का श्रेष्ठ उदाहरण है -कान्हा के प्रति गोपियों की ममता।
गोपियां तो मुक्ति की भी इच्छा नहीं रखती थी। कांहा का सुख ही अपना सुख है ऐसा गोपियां मानती थी।
एक सखी ने उद्धव से कहा कि–” कृष्ण के वियोग में हमारी कैसी दशा है यह तो आपने देख ही लिया है। मथुरा जाकर कृष्ण से कहना कि यदि वे मथुरा में सुख से रहते हैं तो उन्हें ब्रज आने की कोई जरूरत नहीं है। हम तो उन्हें खुश ही देखना चाहती हैं।