Covid-19 ) निरंजन कौन है? वह निरंजन किन-किन रूपों में और कहाँ-कहाँ वास किया हुआ है उस निरंजन से छूटने का उपाय क्या है?
ऐ मित्रों! कबीर साहेब जी बीजक में कहे है कि यह दुःखमय संसार है। संसार की सारी सम्पदा क्षणिक अनित्य है, यानी सदैव साथ रहने वाली नहीं है। इसलिए तुम आवागमन त्रयताप दुःख से छूटने के लिए सार शब्द सत्पुरुष को समाधि द्वारा अनुभव प्राप्त करो, तब तुम कर्मयोगी बन संसार में रहकर भी संसार से अलिप्त रहोगे। भव कर्मपाश यानी कर्मो के बन्धन में नही फँसोगे। अगर तुम ऐसा नहीं किया तो फिर वही दुःख हमेशा लगा रहेगा। सारी सृष्टि के पदार्थ काल मे उत्पन्न होने से काल के अन्तर्गत है।
काल में ही रचना, मरण, त्रयताप, अभाव एवं प्रलय होती है। अतः काल सर्वव्यापी होने से जल-थल में सब जगहों पर व्याप्त है। उसी काल का नाम निरंजन है। त्रिदेवा के पिता का नाम निरंजन है, नित्य अनादि काल का भी नाम निरंजन है और मन को भी निरंजन कहते हैं। प्रकरण के अनुकूल अर्थ लिया जाता है।
ऐ मित्रों ! इस विषय मे दो शब्द अपना भी अनुभव रखना चाहता हूँ। अनादि सद्गुरु की इस वाणी पर यदि विचार करोगे तो यही पाओगे की संसार की कोई वस्तु तुम्हारा नहीं है प्रकृति से संयोग कर सब ईश्वर ने रचा है, बनाया है। समय से उत्पन्न हुआ है और समय से नष्ट भी हो जाएगा इसलिए इसका रक्षक, इसका मालिक सब ईश्वर है फिर इस क्षणिक वस्तु को पाने के लिए क्यों रुदन करते हो? क्यों अपने ही सगे-सम्बन्धियों के दुश्मन बन बैठे हो? इस सचाई को अच्छी तरह जान लो कि जो वस्तु दिखाई दे रही है उन समस्त वस्तुओं में निरंजन वाश किया हुआ है। जप में, तप में, यज्ञ में, दान में, पूजा-पाठ में, तीर्थ में, व्रत में, उपवास में, स्नान में, मूर्ति में, पोथी-पत्रा में समस्त जगहों पर उसी का वाशा है। जहाँ तक मन दौड़ रहा है वहाँ तक निरंजन का ही वास है। इसलिए मन को भी निरंजन कहा गया है।
अपने प्रसंग में सद्गुरुदेव जी ने त्रिदेवा के पिता को भी निरंजन कहा है। वह पिता कौन है? जब मैं इस विषय को विस्तार से जानकारी प्राप्त करने की कोशिश किया तो मुझे झूँसी आश्रम पर एक पुस्तक मिला जिसका नाम था-‘कबीर मंसूर’ उस पुस्तक में लिखा था कि जब सृष्टि की रचना हुई तब अनेक साधु-सन्यासी प्रकट हुए उसी में एक निरंजन नाम का महाशक्तिशाली मानव रूप में निरंजन प्रकट हुआ। वह निरंजन हजारों साल तक तप किया। तब ईश्वर प्रकट होकर बोले कि तुम्हे क्या चाहिए तो निरंजन ने कहा कि मुझे एक स्त्री की आवश्यकता है मैं संसार का विस्तार करना चाहता हूँ।
तब ईश्वर ने आद्य शक्ति को भेजा। आद्य शक्ति और निरंजन ने मिलकर ब्रह्मा, विष्णु महेश को उत्पन्न किया। और स्वयं निरंजन यह कहकर इस ब्रह्माण्ड में गुप्त हो गया कि इन तीनो पुत्रों को मेरा पता मत बताना। अगर बता दोगी तो सृष्टि का विस्तार नहीं हो पाएगा। येलोग मुझे स्वयं खोजेंगे और इसी क्रम में सृष्टि का विस्तार होता जाएगा। मैं इसी अक्षरब्रह्म के पेट मे निवास करूँगा। और गुप्त रहकर सब पर अपना हुक्म चलाऊंगा। आगे चलकर आने वाले पीढ़ी को क्षणिक प्रलोभन देकर इतना काम दे दूंगा कि सबलोग ईश्वर को भूल जाऐंगे, आँख रहते हुए अंधा हो जायेंगे, बुद्धि रहते हुए विवेक मर जाएगा। सबलोग मेरा भक्ति करेंगे। मेरे तीनो पुत्र ब्रह्मा, विष्णु, महेश और तुम मिलकर मेरे ही भक्ति के प्रचार करेंगे। कोई भी मनुष्य मेरे पाश से बाहर न जा सके। यदि मनुष्यों को ईश्वर का पता चल जाएगा तो यह भवसागर रूपी दुकान बंद हो जाएगा। यहाँ काल, मन और त्रिदेवा के पिता तीनो को समझाकर का सिद्ध कर दिया। आप समझदार हो तो समझ लो।
जब सर्व जीव निरंजन के पास में पस कर त्राहि त्राहि करने लगे मुक्ति का मार्ग एकदम बन्द हो गया तब ईश्वर के आदेश से ईश्वर का दूत संदेशी अमानव पुरुष नित्य अनादि सद्गुरुदेव प्रकट हुए। और निरंजन के जाल से निकलने का मार्ग बतलाया। जिन आत्माओं ने उस अमानव पुरुष के वचन को पहचाना उसका शरीरांग हो गया यानी मुक्ति हो गई। जिन्होंने नहीं पहचाना वह काल का जीव बनकर रह गए। जन्म-जन्मान्तर का दुःख लगा ही रह गया। अब सद्गुरुदेव जी कहते हैं कि तुम मेरे वाणी को पहचानो और जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा तुम भक्ति करो। अब आगे की बात अगले दिन…..जय श्री सद्गुरुदेव भगवान👏