‼️ *गायत्री मंत्र* ‼️
गायत्री मंत्र ऋग्वेद का सबसे श्रद्धेय व महत्वपूर्ण मंत्र है।
गायत्री मंत्र मानव जाति की सबसे महत्वपूर्ण प्रार्थनाओं में से एक है।
यह ऋग्वेद के तीसरे मंडल में वर्णित किया गया है।
ऋग्वेद के इस मंडल में 62 मंत्र है जो की मुख्यतया अग्नि और इंद्र को समर्पित किये गए हैं।
गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल के बासठवें सूक्त का दसवां मंत्र है(3:62:10)
ऐसा माना जाता है कि ऋषि विश्वामित्र ने इसकी खोज की थी।
गायत्री मंत्र को सबसे ज्यादा उच्चारित किया गया है व वैदिक साहित्य में सबसे अधिक उपयोग में लिया गया है यथा मनुस्मृति, हरिवम्सा व भागवत गीता।
गायत्री मंत्र सूर्य देव अर्थात सावित्र को समर्पित है।
गायत्री एक वैदिक मीटर या छंद का नाम है जिसमें यह मंत्र लिखा गया है।
वैदिक मीटर ऐसे काव्य छंद होते हैं जिनमें मन्त्रों को गाया अथवा उच्चारित किया जाता है।
वैदिक संस्कृत में ऐसे लगभग 15 मीटर हैं जिनमे से 7 सामान्यतया प्रयोग किये गए हैं – गायत्री, बृहति, पंक्ति, अनुष्टुभ, जागती, उष्णिह, त्रिस्तुभ।
प्रत्येक वैदिक मीटर या काव्य मीटर की अपनी एक ताल, लय, चाल और सौंदर्य शास्त्र होता है।
प्रत्येक वैदिक मीटर में अनेक पद या वर्सेज होते है जिनमे एक निश्चित संख्या में सिलेबल या अक्षर होते हैं।
गायत्री मंत्र इनमे से सबसे छोटा व् महत्वपूर्ण मंत्र है जिसमे 8 सिलेबल या अक्षरों के 3 पद होते हैं अतः इसके हर स्टैंज़ा में 24 अक्षर होते हैं।
यह 24 अक्षर ही गायत्री मंत्र के बीजमंत्र है जिनका कि जब उच्चारण किया जाता है तो यह शरीर के 24 केंद्रों को एक साथ प्रभावित करते हैं।
गायत्री मंत्र अक्षर ओम से अनुस्वारित होता है।
ऐसा माना जाता है की गायत्री मंत्र के उच्चारण से 1,10,000 ध्वनि तरंगे/प्रत्येक सेकंड उत्पन्न होती है। ये ध्वनि तरंगे हमारे शरीर के सूक्ष्म व संवेदी क्षेत्रों पर अच्छा प्रभाव प्रेक्षित करती हैं।
गायत्री मंत्र की ध्वनि का यूँ तरंगो के रूप में एक विशेष लय ताल में प्रवाहित होना ही इसे वेदों का सबसे महत्वपूर्ण व् प्रभावशाली मंत्र बनाता है।
इसे दोहराने का सही समय प्रातःकाल व संध्या समय है, यद्यपि इसे किसी भी समय दोहराया जा सकता है।
गायत्री मंत्र
ॐ
भूर्भुवः स्वः
तत्स वितुर्वरेण्यम
भर्गो देवस्य धीमही
धियो यो नः प्रचोदयात।
उस प्राण स्वरुप, दुःख नाशक, सुख देने वाले महान तेजस्वी, पाप का नाश करने वाले, देवस्वरूप परम पिता परमेश्वर को हम अपनी अंतरात्मा में धारण करें जो हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग की ओर जाग्रत करे।
गायत्री मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या
ॐ = प्रणव,भूर = मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाला,भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदान करने वाला, तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल,
वरेणयं = सबसे उत्तम, भर्गो- = कर्मों का उद्धार करने वाला, देवस्य- = प्रभु
धीमहि- = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान),हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचो- दयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)
हे प्रभु! मनुष्य को प्राण प्रदान करने वाले
समस्त दुखों का नाश करने वाले
समस्त सुख और शांति प्रदान करने वाले
वह प्रभु जो सूर्य के सामान उज्जवल हैं
उनका मैं ध्यान करता हूँ
जो मेरे कर्मों का उद्धार करने वाले हैं
जो सर्वशक्तिमान व सबसे उत्तम हैं
उनकी मैं प्रार्थना करता हूँ कि
हे प्रभु मुझे शक्ति प्रदान कीजिये व मेरी बुद्धि को सही ज्ञान से प्रकाशित कीजिये।।
हे संसार के विधाता
हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें
कृपया करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें व् ज्ञान से प्रज्वलित करें।
गायत्री मंत्र उस परमपिता के निरंतर व् उत्कृष्ट देवत्व को समर्पित है जिसने सूर्य अथवा सावित्र के रूप में अपनी ऊर्जा अथवा शक्ति से जगत को प्रकाशित किया है। उस देवत्व को सविथा(savitha) नाम दिया गया है। सविथा का अर्थ है- वह जिससे यह सभी उत्पन्न हुआ है।
गायत्री मंत्र में परमपिता परमेश्वर की अराधना के तीनों तत्व जैसे- प्रशंसा, ध्यान व प्रार्थना समाहित हैं।
गायत्री मंत्र के लिए वेदों में लिखा गया है कि
“सर्व रोग निवारिणी गायत्री,
सर्व दुःख परिवारिणी गायत्री,
सर्व वंच फलसारी गायत्री”।।
अर्थात गायत्री मंत्र सब रोगों को दूर करने वाला, सभी दुःखों से रक्षा करने वाला व सभी
इच्छित फल देने वाला है।
यह मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है, एकाग्रता को बढ़ाता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, हृदय को स्वस्थ रखता है, तनाव व चिंता से मुक्ति दिलाकर मस्तिष्क को ताकत देता है, त्वचा में आभा आती आती है व अस्थमा रोगियों के लिया गायत्री मंत्र का उच्चारण अत्यंत हितकर है।
स्वामी विवेकानंद ने गायत्री मंत्र के लिया कहा है कि यह ज्ञान व् बुद्धिमता देने वाला मंत्र है अतः यह मंत्रो का यह रत्नजड़ित ताज है।
श्री अरबिंदो ने कहा है कि गायत्री मंत्र में असीमित ऊर्जा निहित है।
इस मंत्र में हम ईश्वर से हमारी बुद्धि को प्रेरणा देने की प्रार्थना करते हैं। हमारे सभी काम हमारी बुद्धि से होते है जब हमारी बुद्धि में कोई विचार आता है, और तभी हम कोई कार्य करते हैं|गायत्री मन्त्र में हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, कि हमारे मन में अच्छे विचार आयें| हम ईश्वर से कहते हैं, ‘मेरी बुद्धि में आप ही विराजमान हों, मेरी बुद्धि को आप ही प्रेरणा दें’ – “धियो यो नः प्रचोदयात्”‘धि’ – का अर्थ है बुद्धि| ‘मेरी बुद्धि को आप ही मार्ग दिखाएं और प्रज्वलित करें| मेरी बुद्धि हर क्षण आपकी दिव्यता से ही प्रेरित हो’ – ऐसी मेरी प्रार्थना है, हे प्रभु!! जब मन में सही विचार आते हैं, तब हमारे सभी कार्य ठीक होते हैं तथा जब ईश्वर स्वयं हमारी मस्तिष्क में विराजमान होंगे तभी हमारा मस्तिष्क उच्च विचारों से प्रेरित होगा व महान कार्य करने में सक्षम होगा। इसीलिये, गायत्री मंत्र में हम परमपिता से उच्च विचारों के लिए प्रार्थना करते हैं – ‘हे ईश्वर, मेरा मन, मेरी बुद्धि और मेरा पूरा जीवन – दिव्यता से व्याप्त हो जाए’| यही गायत्री मन्त्र का महत्व है|
इसके महत्व को हम इस श्लोक से समझ सकते है
गीता अध्याय 10 श्लोक 35 –
“बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम।
मासानां मार्गशीर्षोsहमृतूनां कुसुमाकर:॥
श्री कृष्ण कहते हैं कि
“सामवेद के गीतों में मैं बृहत्साम और छंदो या मंत्रो में मैं गायत्री हूँ,
महीनो में मैं मार्गशीर्ष हूँ और ऋतुओं में मैं वसंत हूँ।”
अर्थात भगवान कहते है कि मन्त्रों में मैं गायत्री मन्त्र हूँ।
इति श्री गायत्री मन्त्रः।
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