(जॉर्नलिस्ट गौतम कुमार) कोरोना महामारी का असर इस्लामी धर्म के ईद उल इफ्तार जैसे महा पर्व को काफी प्रभावित किया है। वैसे तो कोरोना संक्रमण की बढ़ती अकड़ा पर ब्रेक लगाने के लिए 23 मार्च 2020 को लॉक डाउन किया गया था तब से चाहे कोई भी धर्म आस्था की बात क्यों न हो कोरोना का डर सबो को फीकापन बदरंगी सा महसूस करा दिया है।
आज 2021 में कोरोना से प्रभावित देश मे लॉक डाउन की इस्थिति बनी हुई हैं। ऐसे इस्थिति में आम लोगो की जिन्दगी को बर्बाद कर दिया है। किसी भी धर्म की बात करे सबके लिए जिन्दगी जीना मोहाल से हो गया है।
आज इस्लामी परंपरा के मुताबिक, रमजान महीने के 30 दिन समाप्त होने के बाद, ईद उल-फित्र का त्योहार मनाया जा रहा है।
अब सवाल यह है कि क्या हर इस्लामी इस बार पर्व की खुशियां में शामिल हो सकते है। नही हो सकते है देश की हालात की खुशियों पर लॉक डाउन का बटा लगा हुआ है।
बाहर निकलने पर पुलिस की तैनाती है। बजार लगाने की टाइमिंग फिक्स है, भीड़ लगने पर संक्रमण बढ़ने की खतरा है। इस लिए दुकानों पर ग्राहकों की कमी देखने को मिला है।
आज ईदी की मिलन समारोह है। हर व्यक्ति एक दूसरे से प्रेम व अपने रिश्ते को मजबूत करते है। एक दूसरे से गले मिलने की परंपरा को निभा पाएंगे यदि आप ऐसा सोच रहे है तो आप गलत है।
रमजान के बाद आने वाले महीने को शव्वाल का महीना कहा जाता है। ईद का दिन केवल त्योहार का दिन नहीं होता, बल्कि यह दिन है रमजान में सीखी गई बातों को अपने जीवन में ढालने का भी होता है। रमजान का उद्देश्य केवल खाना-पीना छोड़ना नहीं था, बल्कि रोजा प्रतीक होता है स्वयं को हर बुराई से जीवन भर दूर रखने का।
जानिए क्यों मनाते हैं ईद और किस तरह हुई ईद-उल-फितर की शुरुआत, पूरी कहानी
ईद क्या है, क्या है रमजान
रोजा अरबी शब्द सियाम (सावंम) के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ ‘संयम’ होता है। रमजान के दौरान दिन में खाने और पानी से दूर रहने से रोजेदार को याद रहता है कि उसे जिम्मेदारी की भावना के साथ जीवन जीना है। उन्हें खुद को याद दिलाना है कि उन्हें संयम का जीवन अपनाना है। कुछ लेना है और कुछ छोड़ना है। यही रमजान की असली भावना है। इसे गरीबों को फित्रा (दान) बांटने के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। तभी ईद उल-फित्र गरीबों के लिए भाईचारे की भावना और सहानुभूति प्रकट करने का भी प्रतीक है।
ईद में मीठा भोजन क्यों बनता है?
ईद में स्वादिष्ट पकवान और नए परिधान की खास व्यवस्था की जाती है और परिवार समेत दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान किया जाता है। मूल रूप से ईद विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देने का त्योहार है। इसलिए हजरत मुहम्मद सहाब ने इसे सभी धर्म के लोगों के साथ मिलकर मनाने और सबके लिए खुदा से सुख-शांति और बरकत की दुआएं मांगने की तालीम दी है।
जानें, आखिर ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अजहा में क्या है अंतर
ईद का सामाजिक महत्व
ईद उल-फित्र का सामाजिक अर्थ भी है। इस दिन मुस्लिम अपने घरों से बाहर निकलते हैं, एक साथ नमाज पढ़ते हैं। अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों से मिलते हैं और अन्य लोगों को शुभकामनाएं देते हैं। दरअसल, इस त्योहार का असल उद्देश्य भी सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना है। इस तरह ईद के त्योहार की हर गतिविधि सामाजिक गतिविधि में बदल जाती है।
पर इस बार कोरोना में समझना होगा। कोरोना संक्रमण है और एक दूसरे के सम्पर्क में आने से बढ़ने की बात कही जा रही है। इसलिए सरकार की गाइडलाइन भी है जिसको समझना होगा। और समाज की दृष्टिकोण से भी बचना और बचना ही असल में रिश्तों को मजबूत करता है।