*एक बार भगवान राम और लक्ष्मण दोनों भाई एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे । उतरते समय उन्होंने अपने-अपने धनुष बाहर तट पर गाड़ दिए । जब वे स्नान करके बाहर निकले तो लक्ष्मण ने देखा की उनकी धनुष की नोक पर रक्त लगा हुआ था !*
*उन्होंने भगवान राम से कहा -” भ्राताश्री ! लगता है कि अनजाने में कोई हिंसा हो गई ।”*
*दोनों ने मिटटी हटाकर देखा तो पता चला कि वहां एक मेढ़क मरणासन्न पड़ा हुआ है ।*
*भगवान राम ने करुणावश मेंढक से कहा- ” तुमने आवाज क्यों नहीं दी ? कुछ हलचल,छटपटाहट तो करनी थी। हम लोग तुम्हे बचा लेते । जब सांप तुम्हे पकड़ता है तब तो तुम खूब आवाज लगाते हो । धनुष लगा तो क्यों नहीं बोले ?*
*मेंढक बोला – प्रभु ! जब सांप पकड़ता है, तब मैं ‘ राम- राम ‘ चिल्लाता हूँ । एक आशा और विश्वास रहता है कि प्रभु अवश्य पुकार सुनेंगे। परन्तु आज जब देखा की साक्षात् भगवान् श्री राम स्वयं धनुष लगा रहे है तो किसे पुकारता ? आपके सिवाय किसी और का नाम याद नहीँ आया । बस इसी को अपना सौभाग्य मानकर चुपचाप सहता रहा ।*
*सच्चे भक्त जीवन के हर क्षण को भगवान का आशीर्वाद मानकर उसे स्वीकार करते हैं । जब दुःख होता है वो उसे अपनी गलती की सजा समझते है और जब सुख होता है तो उसे ईश्वर की दया समझते है ।*