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भागवत कथा

Covid-19 ) कन्यादान का मूल अर्थ।

*कन्यादान शब्द पर समाज में गलतफहमी पैदा हो गई है*, *और अकारण भ्रांतियां उत्पन्न की गयी हैं,*
*” समाज को यह समझने की जरूरत है कि कन्यादान का मतलब संपत्ति दान नही होता* *और… न ही ” लड़की ” का दान होता है”*
*”कन्यादान” का मतलब “गोत्र दान” होता है*…
*कन्या ” पिता ” का गोत्र छोड़कर ” वर ” के गोत्र में प्रवेश करती है,*
*पिता कन्या को अपने “गोत्र से विदा करता” है*
*और*
*उस गोत्र को “अग्नि देव को दान” कर देता है…*
*और वर अग्नि देव को साक्षी मानकर कन्या को अपना गोत्र प्रदान करता है एवं अपने गोत्र में स्वीकार करता है इसे “कन्यादान” कहते हैं*
*सभी लोगो तक जानकारी साझा करे व समाज मे भारतीय संस्कृति व परम्पराओ को लेकर जो भ्रांति उत्पन्न है उसे दूर करने में अपना योगदान दे,भारतीय संस्कृति की रक्षा हेतु निरंतर वर्तमान व भावी पीढ़ी को जागरूक करते रहे*
*देश की तरक्की तभी संभव है जब संस्कृति जीवित हो*
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