“त्रेता में जब जन्मे श्रीराम”
ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ तो एक दिन भोलेनाथ ने माता पार्वती से पृथ्वीलोक पर अपने प्रभु श्रीराम के पास जाने की इच्छा जाहिर की। इसके बाद माता ने उनसे कहा कि यदि शिव पृथ्वी पर चले गए तो मां भी उनके बिना नहीं रह पाएंगी। ऐसी स्थिति में शंभू ने माता पार्वती के विरह की बात पर विचारकर अपने 11 रूद्रों की कथा मां से कही और उन्हें बताया कि इन्हीं 11 रूद्रों में से एक हनुमान अवतार है जो कि वह लेने जा रहे हैं।
भोलेनाथ की कथाओं में यह भी उल्लेख मिलता है कि त्रिकालदर्शी होने के चलते वह यह जानते थे कि भगवान राम के जीवन में आगे किस तरह की परेशानियां आने वाली हैं और पृथ्वी का कल्याण करने के लिए प्रभु को उनकी आवश्यकता पड़ेगी। इसके अलावा यह भी उल्लेख मिलता है कि शिव ये जानते थे कि कलयुग में जब पृथ्वी पर न राम होंगे न शिव तब पृथ्वी के लोगों को ऐसे किसी प्रभु सेवक की आवश्यकता होगी जो श्रीराम की कृपा से उनका कल्याण कर सके। यही वजह है कि शिव के हनुमान अवतार को सर्वश्रेष्ठ अवतार की संज्ञा दी गई है।
माता जानकी का है यह वरदान
बाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका में बहुत ढूढ़ने के बाद भी जब माता सीता का पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे। लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का स्मरण हुआ और उन्होंने पुन: पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ कर दी। इसके बाद वह मां से अशोक वाटिका में मिलते हैं। उस समय ही माता जानकी ने हनुमान को अमरता का वरदान दिया था। यही वजह है कि हर युग में हनुमान भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं। एक और उल्लेख मिलता है हनुमान चालीसा की एक चौपाई में। जहां लिखा है- ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता। ’अर्थात ‘आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते हैं।
उल्लेख मिलता है कि जब श्रीराम ने अपनी मृत्यु की घोषणा की तो यह सुनकर राम भक्त हनुमान जी बहुत आहत हुए। वह माता सीता के पास जाते हैं और कहते हैं ‘हे माता मुझे आपने अजर-अमर होने का वरदान तो दिया किन्तु एक बात बताएं कि जब मेरे प्रभु राम ही धरती पर नहीं होंगे तो मैं यहां क्या करुंगा? मुझे अपना दिया हुआ अमरता का वरदान वापस ले लीजिए।’ जब हनुमान माता-सीता के सामने जिद पर अड़ जाते हैं तब माता सीता श्रीराम का ध्यान करती हैं वह प्रकट होते हैं। इसके बाद श्रीराम हनुमान को गले लगाते हुए कहते हैं ‘हनुमान मुझे पता था कि तुम सीता के पास आकर यही बोलोगे। देखो हनुमान धरती पर आने वाला हर प्राणी, चाहे वह संत है या देवता कोई भी अमर नहीं है। तुमको तो वरदान है हनुमान, क्योंकि जब इस धरती पर और कोई नहीं होगा तो राम नाम लेने वालों का बेड़ा तुमको ही तो पार करना है। एक समय ऐसा आएगा जब धरती पर कोई देव अवतार नहीं होगा, पापी लोगों की संख्या अधिक होगी तब राम के भक्तों का उद्धार मेरा हनुमान ही तो करेगा। इसलिए तुमको अमरता का वरदान दिलवाया गया है हनुमान।’ तब हनुमान जी अपने अमरता के वरदान को समझते हैं और राम की आज्ञा समझकर आज भी धरती पर विराजमान हैं।
*!! जय श्री राम!!*
*हनुमत् सद् आचार हैहनुमते सद् व्यवहार।*
*विनय, बुद्धि, सौजन्यता हनुमत् तेज-विचार।।*
*!! जय श्रीराम!!*