हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा हैं. इसने यह स्वरूप लंबी यात्रा के पश्चात प्राप्त किया है. सांस्कृत भाषा की गंगोत्री से निकला यह भाषा अपनी सहचरी भाषाओं से अर्थ ग्रहण करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रही है. यह हमारे संप्रेषण की भाषा है. हमारे भाव-विचारों एवं संवेदनाओं की अभिव्यक्ति की भाषा है. हमारे सुख-दुख की साक्षी हिन्दी ही रही है. जनमानस को सांस्कृतिक दृष्टि से हिन्दी की प्रमुख भूमिका रही है.
आधुनिक युग में युवकों में राष्ट्रीय भावना जगाने में हिन्दी के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, आचार्य शिवपूजन सहाय, मैथिली शरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, हिन्दी के अनेक साहित्यकार, एवं कवियों को हम कैसे भूल सकते हैं.
राष्ट्र भाषा हिन्दी अपनी सहचरी भारतीय भाषाओं से शब्द ग्रहण करती हुई इस पद की अधिकारी बनी है. इसे अन्य भारतीय भाषाओं को भी संपन्न किया है.
१४ सितम्बर १९४९ को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्र भाषा होगी. इसी महत्वपूर्ण निर्णय को प्रतपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए विश्व हिन्दी दिवस पर हमें संकल्प लेना होगा!
जैसा की हम जानते हैं कि हिन्दी भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है.जब हिन्दी भाषा में भारतेंदु हरिश्चंद्र और प्रेमचंद महान सूर्य☀ क्षमा उदय हुआ. इसके साथ भारत के आजादी में भी हिन्दी का काफी महत्व रहा है. चाहे वो आजादी के लिए तैयार किये गये हिन्दी के नारे हो या फिर देश भक्ति की कविताएँ सभी ने देश की जनता के हृदयों में क्रांति के ज्वाला भरने का काम किया. यहीं कारण है कि हिन्दी को जन-जन की भाषा माना गया. और इसे राष्ट्र भाषा का दर्जा मिला.
भारत स्वतंत्र देश है.वह भी अपनी राष्ट्र भाषा का प्रगति कर रहा है. राष्ट्र भाषा हिन्दी निकट भविष्य में विश्व के श्रेष्ठ भाषाओं में मानी जायेगी. राष्ट्र भाषा के विकास में ही देश की उन्नति निहित है.
हिन्दी भाषा में सांस्कृतिक, दार्शनिक, तथा धार्मिक तत्व भी अन्य भाषाओं से अधिक है. अत: हिन्दी में ही सर्वाधिक क्षमता हैं.
हिन्दी एकता की डोर को मजबूत करती है. हिन्दी का मान बढ़ाने के लिए आम जनों को हिन्दी के लिए मान सम्मान अपने दिल एवं दिमाग में भरना होगा!
भारत एक बहुभाषी महान राष्ट्र है और इसकी सभी भाषाएँ समृद्ध है, परन्तु इसके पराधीन स्थित में भी जनमानस को सांस्कृतिक दृष्टि से रखने में हिन्दी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है!
आज के हिन्दी दिवस पर मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ जिस उचारण में सहज ही भावों को व्यक्त करता है वह हिन्दी भाषा में ही सम्भव है!