(जर्नलिस्ट गौतम कुमार गुप्ता) जहां एक तरफ कोरोना संक्रमण को बढ़ते हुए देख रोकथाम के लिए हर रोज प्रशासन द्वारा नई नई गाइडलाइन पास किया जा रहा है। वही हर गाइडलाइन को ध्वस्त करती आम जनता।
एक तरफ प्रशासन की गाइडलाइन को ताख पर रखते हुए अब आम लोग रोजमर्रा जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर हो चुके हैं और अब जिंदगी मौत के बीच संघर्ष करते हुए अपनी दिनचर्या में कोरोना जैसे संक्रमण को भूल चुके हैं ऐसा प्रतीत होता है की कोरोना जैसे संक्रमण का भ्रामकता हवा में खो गई हो।
अब जनता भी मजबूर हो चुके हैं उनकी भी अपनी मजबूरियां है जीवन जीना है तो कमाना भी जरूरी है। कमाना रहे है तो खाना भी नसीब हो रहा है और उसी में धर्म और आस्था से जुड़े कर्मकांड को भी करना जरूरी है।
अब लगातार त्योहारों का सीजन शुरू हो चुका है पहले दिवाली और अब महापर्व छठ का त्यौहार होने जा रहा है और इस त्यौहार में व्रतियों को गंगा किनारे, तटों पर या तालाबों पर जाना अनिवार्य होता है। यह पर्व बिहार और उत्तर प्रदेश का महापर्व है हलाकि अब कहना मुश्किल है क्योंकि यह पर्व पूरी दुनिया मे मनाया जा रहा है। इस पर्व का महत्व घर से बाहर नदी और तालाबों व बहती गंगा के किनारे होता है।
ऐसे में जिला प्रशासन और आम जनता के बीच बहुत बड़ी चैलेंज देखा जा रहा है। कोरोना संक्रमण पर रोकथाम के लिए जिला प्रशासन ने गाइडलाइन तो पास कर दिया लेकिन क्या इस महापर्व के अवसर पर लाखों की भीड़ पर काबू कर पाएगी जिला प्रशासन।
घबराने की बात नही है।
जैसा कि हर बार प्रशासन इस मामले में नाकाम होती रही है इस बार भी होगी। प्रशासन भी अपनी फॉर्मेलिटीज के लिए गाइडलाइन तो जारी कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ खुलेआम झूठ भी दे दी है।
हर तरफ गंगा किनारे और तटों व तालाबों पर लोग अपनी अपनी घाट बनाना शुरू कर दिये हैं नाम अंकित हो चुका है और आज साझा काल सूर्यास्त के समय पहला सूर्य को अर्घ्य देने छठ व्रतियों टोली पहुंचेंगे।
अब देखना यह है कि गाइडलाइन के अनुसार 50 वर्ष से ज्यादा आयु के लोग व 10 वर्ष से कम आयु के बच्चे घाट पर जाते हैं या नहीं या इसके लिए जिला प्रशासन कोई ठोस कदम उठाती है वैसे तो जिला प्रशासन इन मामलों में फेल रही है तो वही आम जनता की मजबूरियां भी साथ खड़ी है इसमें मिलाजुला कर चलना भी मजबूरी है।
एक यह भी समझदारी की गाइडलाइन अपनी जगह पर है। “कोरोना को हराना है तो डर को दूर भगाना है”