विपक्षी दलों द्वारा प्रधानमंत्री चुप्पी पर उठाए जा रहे हैं सवाल
नई दिल्ली – अमेरिका द्वारा भारतीय नागरिकों को अवैध प्रवास के आरोप में जबरन वापस भेजने की घटना ने भारत में राजनीतिक और सामाजिक बहस छेड़ दी है। हाल ही में अमेरिका ने 104 भारतीय नागरिकों को बिना किसी मानवाधिकार की चिंता किए वापस भारत भेज दिया। आरोप है कि उन्हें अमानवीय तरीके से भेजा गया, जिसमें कड़े नियंत्रण और बंधन के आरोप हैं।
घटना के बाद, विभिन्न राजनीतिक दलों ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा और इस पर तीव्र विरोध किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के कार्यकर्ताओं ने प्रदेश अध्यक्ष जितू पटवारी के नेतृत्व में इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस गंभीर मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस प्रकार की अमानवीयता और राष्ट्रीय अपमान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए था। उनका कहना है कि अगर विदेशों में भारतीय नागरिकों के साथ इस तरह का व्यवहार हो, तो भारत सरकार को तत्काल कदम उठाना चाहिए था।
वहीं, सरकार ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी है और विदेश मंत्रालय ने इस मामले की गहरी जांच का आश्वासन दिया है। मंत्रालय ने अमेरिकी अधिकारियों से डिपोर्टेशन प्रक्रिया की पूरी जानकारी मांगी है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि भारतीय नागरिकों के साथ उचित व्यवहार किया गया हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर अभी तक सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है, जिससे विपक्षी दलों द्वारा उनकी चुप्पी पर सवाल उठाए जा रहे हैं। हालांकि, हाल ही में एक भाषण में मोदी ने विपक्ष पर आंबेडकर की विरासत को मिटाने का आरोप लगाया, लेकिन इस मामले पर उनका रुख अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में और ज्यादा तूल पकड़ सकता है, खासकर तब जब चुनावों का माहौल भी गर्म होता है।
यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि विदेशों में भारतीय नागरिकों के साथ होने वाली घटनाओं पर सरकार का क्या रुख होना चाहिए और ऐसे मामलों में उसकी भूमिका क्या होनी चाहिए।