यह एक सुंदर रूप से डिज़ाइन किया गया चित्र है, जो "सभ्यता और शिष्टाचार" को मुकुट में चमकते दो रत्नों के रूप में दर्शाता है। यह व्यक्तित्व विकास में उनकी महत्ता को दर्शाता है।
सभ्यता और शिष्टाचार किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाले दो अनमोल रत्न हैं। इन दोनों का पारस्परिक संबंध इतना घनिष्ठ है कि एक के बिना दूसरे की कल्पना करना निरर्थक है। जो व्यक्ति सभ्य होगा, वह स्वाभाविक रूप से शिष्टाचार का पालन करेगा, और जो शिष्ट होगा, उसे समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होगी।
सभ्य व्यक्ति सदा इस बात का ध्यान रखता है कि उसकी कोई भी बात या व्यवहार किसी को कष्ट न पहुँचाए या किसी के सम्मान को ठेस न पहुँचाए। वह अपने विचारों को नम्रता और संयम के साथ प्रकट करता है तथा दूसरों की बातों को भी आदरपूर्वक सुनता है। ऐसे व्यक्ति आत्मप्रशंसा से दूर रहते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि “अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना” संकीर्ण मानसिकता का प्रतीक है।
शिष्टाचार में इतनी शक्ति होती है कि बिना किसी भौतिक उपहार के भी व्यक्ति दूसरों का श्रद्धाभाजन और सम्मानित बन सकता है। इसके विपरीत, अशिष्ट व्यक्ति दूसरों के साथ दुर्व्यवहार कर स्वयं को समाज में अयोग्य बना लेता है। कई बार ऐसे लोग अपने घर-परिवार में भी सम्मान नहीं पाते।
हमारे दैनिक जीवन में कई छोटी-बड़ी आदतें असभ्यता का परिचय देती हैं, जिन्हें हम कभी-कभी गंभीरता से नहीं लेते। उदाहरणस्वरूप:
✅ उधार ली हुई वस्तु को समय पर न लौटाना या उसे खराब करके वापस करना।
✅ बाजार से उधार सामान खरीदकर समय पर भुगतान न करना।
✅ किसी को घर बुलाकर स्वयं अनुपस्थित रहना।
✅ पत्रों या संदेशों का समय पर उत्तर न देना।
✅ कार्यालय या महत्वपूर्ण बैठकों में देर से पहुँचना।
ये सभी आदतें व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाती हैं और उसे समाज में गैर-जिम्मेदार एवं अविश्वसनीय बना देती हैं। सभ्यता और शिष्टाचार अपनाकर ही व्यक्ति सम्मान, प्रेम और आदर प्राप्त कर सकता है। इसलिए, हमें न केवल अपने व्यवहार में बल्कि अपनी आदतों में भी शिष्टाचार को आत्मसात करना चाहिए।