नई दिल्ली, जनवरी 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मौजूद कानूनी विसंगतियों की जांच करने का निर्णय लिया है। यह कदम खासतौर पर कम उम्र में हुए विवाह को रद्द करने की प्रक्रिया और पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग कानूनी विवाह योग्य आयु के कारण उत्पन्न जटिलताओं को स्पष्ट करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
क्या है मामला?
भारत में वर्तमान कानूनी प्रावधानों के तहत पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष निर्धारित है। हालांकि, कई मामलों में बाल विवाह होने के बाद उनके कानूनी प्रभाव और रद्द करने की प्रक्रिया को लेकर अस्पष्टता बनी रहती है। इस अधिनियम की समीक्षा करके सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करना चाहता है कि किसी भी नाबालिग को जबरन विवाह के बंधन में नहीं बांधा जाए और यदि ऐसा होता है, तो उसे निरस्त करने की एक स्पष्ट और प्रभावी कानूनी प्रक्रिया उपलब्ध हो।
न्यायालय का उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट की इस जांच का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित बिंदुओं पर स्पष्टता लाना है:
कम उम्र में विवाह की वैधता: क्या बाल विवाह स्वतः अवैध माना जाएगा, या इसे अदालत के हस्तक्षेप से रद्द करना होगा?
नाबालिगों के अधिकार: यदि कोई लड़की या लड़का बाल विवाह के बाद इसे समाप्त करना चाहता है, तो उसके लिए क्या कानूनी विकल्प उपलब्ध हैं?
अलग-अलग विवाह योग्य आयु का प्रभाव: पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग विवाह की कानूनी उम्र को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है। सुप्रीम कोर्ट इस असमानता से उत्पन्न सामाजिक और कानूनी प्रभावों की समीक्षा करेगा।
न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता: क्या बाल विवाह निषेध अधिनियम को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसमें संशोधन की जरूरत है?
क्या होगा असर?
इस समीक्षा के बाद भारत में बाल विवाह को रोकने और पहले से हो चुके बाल विवाहों को रद्द करने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी हो सकती है। इसके अलावा, यह फैसला देश में विवाह कानूनों में सुधार और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम में स्पष्टता लाने से पीड़ितों को न्याय दिलाने में मदद मिलेगी। साथ ही, यह उन सामाजिक परंपराओं पर भी प्रभाव डालेगा जो अभी भी कई क्षेत्रों में बाल विवाह को बढ़ावा देती हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय देश में विवाह संबंधी कानूनों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि अदालत कोई ठोस निर्देश जारी करती है, तो इससे बाल विवाह से जुड़े कानूनी विवादों को सुलझाने और पीड़ितों को राहत दिलाने में सहायता मिलेगी।