Category: भागवत कथा

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भागवत कथा

अपने अंदर आत्मभाव बढ़ाइए।

संजीवनी ज्ञानामृत। आत्मभाव” का प्रयास करिए, इससे आसपास की रूखी, उपेक्षणीय, अप्रिय वस्तुओं का रूप बिलकुल बदल जाएगा।  विज्ञ लोग कहते हैं कि अमृत छिड़कने से मुर्दे जी उठते हैं। हम कहते हैं कि प्रेम की दृष्टि से अपने चारों ओर निहारिए, मुर्दे सी अस्पृश्य और अप्रिय वस्तुएँ...
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इस जल्दबाजी से क्या फायदा।

संजीवनी ज्ञानामृत। “आतुरता” और “अधीरता” की बुराई मनुष्य को बुरी तरह परेशान करती है। प्रायः हमें हर बात में बहुत जल्दी रहती है, जिस कार्य में जितना समय एवं श्रम लगना आवश्यक है उतना नहीं लगाना चाहते, अभीष्ट आकांक्षा की सफलता तुर्त-फुर्त देखना चाहते हैं।  बरगद का पेड़...
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संसार की सर्वोपरि शक्ति-आत्मीयता।

संसार में दो प्रकार के मनुष्य होते हैं, एक वे जो “शक्तिशाली” होते हैं, जिनमें “अहंकार” की प्रबलता होती है।  शक्ति के बल पर वे किसी को भी डरा धमकाकर वश में कर लेते हैं । कम साहस के लोग अनायास ही उनकी खुशामद करते रहते हैं, किंतु...
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प्रार्थना में अतुलनीय बल / पौषमाह कृष्णपक्ष चतुर्थी।

संजीवनी ज्ञानामृत। मनुष्य कितना दीन-हीन, स्वल्प शक्ति वाला, कमजोर है । यह प्रतिदिन के जीवन से पता चलता है ।  उसे पग-पग पर परिस्थितियों के आश्रित होना पड़ता है । कितने ही समय तो ऐसे आते हैं, जब औरों से सहयोग न मिले तो उसकी मृत्यु तक हो...
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आत्मीय व सांसारिक चिंतन/28Dec23 गुरुवार/पौषमाह कृष्णपक्ष द्वितीया २०८०-

संजीवनी ज्ञानामृत:- हम कितना भी भजन कर लें, ध्यान कर लें लेकिन हमारा संग अगर गलत है तो सुना हुआ, पढ़ा हुआ, और जाना हुआ कुछ भी तत्व आचरण में नहीं उतर पायेगा। जैसे – धनवान होना है तो धनी लोगों का संग करें, राजनीति में जाना है...
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मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष पूर्णिमा २०८० / सत्य को सम्मान के साथ अपनाइए |

संजीवनी ज्ञानामृत :-“सत्य” भाषण वाणी का तप है, इससे “वाक सिद्धि” जैसी विभूतियाँ प्राप्त होती है, इसलिए सत्य भाषण का हर किसी को अभ्यास करना चाहिए उसके साथ ही “प्रिय भाषण” और “हित भाषण” के अलंकार भी जोड़ रखने चाहिए। सत्य तो बोलना ही चाहिए, पर साथ ही...
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आत्मा में अनंत विश्वास / अर्थात -आत्मविश्वास |

संजीवनी ज्ञानामृत| “आत्मा” अनंत शक्तियों का भंडार होती हैं। संसार की ऐसी कोई भी शक्ति और सामर्थ्य नहीं, जो इस भंडार में न होती हो। हो भी क्यों न, आत्मा परमात्मा का अंश जो होती है। सारी शक्तियाँ, सारी सामर्थ्य और सारे गुण उस एक परमात्मा में ही...
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आपकी असफलता के लिए / दूसरे ही दोषी क्यों हैं ?

संजीवनी ज्ञानामृत| अपनी हर एक बाह्य परिस्थिति की जिम्मेदारी दूसरों पर मत डालिए, वरन् अपने ऊपर लीजिए।  दुनिया को दर्पण के समान समझिए जिसमें अपनी ही सूरत दिखाई पड़ती है। दूसरे लोगों में अच्छाइयाँ- बुराइयाँ दिखाई पड़ती हैं, सामने जो प्रिय-अप्रिय परिस्थितियाँ आती हैं, इसका कारण कोई और...
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मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष प्रतिपदा”संजीवनी ज्ञानामृत”शिष्टाचार” की पाठशाला – “परिवार”

“शिष्टाचार” का मूल मंत्र है-“अपनी नम्रता और दूसरों का सम्मान” इस कसौटी पर जो जितना खरा उतरता है उसे उतना ही सभ्य-सुसंस्कृत समझा जायेगा। जो अपना अहंकार जताते हैं और दूसरों का अपमान करते हैं वे असभ्य गिने जाते हैं। आवश्यक नहीं कि ऐसा घटिया प्रदर्शन मारपीट से,...
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संजीवनी ज्ञानामृत/आत्मघाती अहंकार से बचिए।

अहंकार” के कारण न केवल मनुष्य जाति हिंसा तथा विनाश का शिकार हुई है बल्कि उसके कारण मनुष्य का नैतिक पतन भी हुआ है । स्वार्थ, संकीर्णता, अनुदारता, लोभ, परस्वत्वापहरण जैसे दुर्गुणों का एकमात्र जनक भी “अहंकार” ही है संपन्नता व्यक्ति की “श्रमशीलता” और “पुरुषार्थ” का पुरस्कार है,...
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संजीवनी ज्ञानामृतअसत्य भाषण से अपार हानि

“सत्य” सदैव कल्याणकारी तथा शक्तिदायक होता है। सीधी-सच्ची और सही बात कह देने से मनुष्य की बहुत कम हानि होने की संभावना रहती है। ठीक और सही बात सुनकर प्रथम तो कोई भी अच्छा आदमी बुरा नहीं मानता है और यदि सत्य की कठोरता से उसे कुछ नाराजगी...
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संजीवनी ज्ञानामृत, समाज में बढ़ती दुष्प्रवृत्तियाँ / हमारी जिम्मेदारी कितनी ?

संपूर्ण मनुष्य जाति एक ही सूत्र में बंधी हुई है । विश्वव्यापी जीव तत्व एक है । आत्मा सर्वव्यापी है । जैसे एक स्थान पर यज्ञ करने से अन्य स्थानों का भी वायुमंडल शुद्ध होता है और एक स्थान पर दुर्गंध फैलने से उसका प्रभाव अन्य स्थानों पर...
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संजीवनी ज्ञानामृत/प्रसन्न” रहना ईश्वर की कृपा।

प्रसन्नता” संसार का सबसे बड़ा सुख है। जो प्रसन्न है, वह सुखी है और जो सुखी है, वह अवश्य प्रसन्न रहेगा। जिसके जीवन से प्रसन्नता चली गई, हर्ष उठ गया, वह जीने को जीता तो है ही, किंतु निर्जीवों जैसा।  जीवन में क्या आनंद है, उसमें कितनी सुख-शांति...
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१४ नवम्बर २०२३ मंगलवार/कार्तिक शुक्लपक्ष प्रतिपदा २०८०/संजीवनी ज्ञानामृत‼️/मोहग्रस्त नहीं, विवेकवान बनें।

परिवार के प्रति हमें सच्चे अर्थों में कर्त्तव्यपरायण और उत्तरदायित्व निर्वाह करने वाला होना चाहिए।  आज मोह के तमसाच्छन्न वातावरण में जहाँ बड़े लोग छोटों के लिए दौलत छोड़ने की हविस में और उन्हीं की गुलामी करने में मरते-खपते  रहते है, वहाँ घर वाले भी इस शहद की...
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धन” से महत्वपूर्ण भी बहुत कुछ है।

“शरीर की स्वस्थता,” “मन का संतुलीकरण,” “परिवार की सुसंस्कारिता,” पुण्य-परमार्थ का संपादन,” “समाजगत  सुव्यवस्था” आदि विषयों पर मनुष्य को आवश्यक ध्यान देना चाहिए और ठीक तरह कार्यान्वित करने के लिए  भरपूर प्रयत्न करना चाहिए, पर यह संभव तभी होता है, जब  इनके लिए पर्याप्त समय मिले। मन की...