Category: ब्रह्मविद्या विहंगम योग

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ब्रह्मविद्या विहंगम योग

महर्षि सद्गुरु सदाफल देव विहंगम योग/ सप्ताहिक सत्संग संगोष्ठी आयोजित किया गया |

आगामी 1 जून 2024 को समस्त नागरिकों को आवाहन किया जिनका उम्र 18 वर्ष से उपर हो वे अवश्य ही अपने मताधिकार का प्रयोग अथिक से अधिक संख्या में करें। जिसमें स्वस्थ्य लोकतंत्र का निर्माण हो सके। आज के कार्यक्रम में भोजपुर जिला सचिव श्री विजय पाण्डेय, परामर्शक श्री दीपनारायण प्रसाद, मीडिया प्रभारी श्री सुरेश कुमार, अमरेन्द्र श्रीवास्तव,कमल किशोर श्रीवास्तव, रामजी यादव, अमित कुमार, रीता देवी, शिवकुमारी देवी, गुड़िया देवी, पिंकी प्रसाद, पुष्पा देवी के अलावे दर्जनों गुरू भाई बहनों की उपस्थिति रही।
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सद्गुरु सदाफल देव आश्रम,चना बक्सर में बैठक सह सत्संग संपन्न|

आश्रम के विकास व विहंगम योग के प्रचार प्रसार पर विचार विमर्श में कहा सभी गुरू भाई बहनों को मील जुलकर एक साथ गुरू सेवा कार्य में लगना पड़ेगा तभी संत समाज व आश्रम का विकास होगा जिसके फलस्वरूप सद्गुरु देव भगवान की कृपा भी हम सबको प्राप्त होता रहेगा। आगे उन्होंने कहा कि सबको प्रेम शांति से रहना चाहिए। स्ववेंद के दोहे को प्रस्तुत करते हुए कहा कि सद्गुरु सदाफल देव महाराज जी ने हम सभी के लिए कितना बड़ा संदेश दिया है |
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दुःख से निवृत्त होने का उपाय वैराग्य है। सद्गुरु

संत और सत्संग का मिलन बड़े भाग्य से होता है। संसार में सुख परिकल्पना है ही नहीं बल्कि दुःख से निवृत्त होने का उपाय वैराग्य है। निष्काम भाव से किया गया कर्म ही विक्रम की श्रेणी में आता है इसके लिए सद्गुरु का मिलन आवश्यक है।
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विहंगम योग का ज्ञान दुर्लभ है| सद्गुरु देव

लोभ- तृष्णा, अहंकार के खाई से सभी गुरू शिष्यो को निकलकर दान करना चाहिए। मन की चाल कुचाल है,जीव ही उबटन चलाए । इससे निवृत्ति का उपाय केवल सद्गुरु ही बतला सकते हैं।
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जब वर्तमान स्वामी जी ने शिष्य से जबरदस्ती स्वर्वेद का पाठ करवाया। DNtvIndiaNews

(कमलेश दत्त मिश्र) गया/बिहार| कहानी मधेपुरा के बिजेन्दर यादव जी मास्टर साहब के यहाँ का है।बिजेन्दर जी स्वामी जी के शिष्य है जिनके सम्बन्ध में दो कहानी पूर्व में लिख चुका हूं।आज तीसरी कहानी जो उन्ही के परिवार से सम्बंधित है लिख रहा हूँ। दुर्गा पूजा के अवसर...
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भजन करें! इसमें विलम्ब क्यों ब्रह्मविद्या विहंगम योग दर्शन–दिग्दर्शन| Darshan

माया का विस्तार स्थूल जगत् में तो है ही, परन्तु सूक्ष्म, झीनी माया सब घट में समाकर आत्मस्वरूप को ढाँपी हुई है । सबसे मोटी माया स्त्री, पुत्र, धन की है ।  मान, प्रतिष्ठा, कलह, ईर्ष्या उससे भी सूक्ष्म माया है, जिससे छुटकारा पाना अत्यन्त असम्भव हो जाता...
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प्रश्न(Question_ कर्म, अकर्म तथा विकर्म क्या है? जीवन्मुक्त योगी का कर्म किस प्रकार होता है?]

कर्म और अकर्म  का ज्ञान रहस्यपूर्ण योगियों का ज्ञान है। शुभाशुभ  दो प्रकार के कर्म होते हैं, जिनके फल कर्म के कर्ता को  अवश्य भोगने पड़ते हैं। इसके लिए जन्म धारण करना पड़ता है और कालान्तर में मृत्यु होती है। इसे ही आवागमन का चक्र कहा गया है,...
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नित्य अनादि सदगुरु श्री कबीर साहेब ने अपने प्रमुख ग्रन्थ बीजक के महत्वपूर्ण उपदेश | स्वर्वेद (Swarved)

नित्य अनादि सदगुरु श्री कबीर साहेब ने अपने प्रमुख ग्रन्थ बीजक में यह महत्वपूर्ण उपदेश दिया है, इस पृथ्वी के मानव मात्र को इन पर चिन्तन–मनन करते हुए उचित मार्ग पर चलना चाहिए– हे मनुष्यों! शिवादि देव एवं अनेक ऋषि–मुनि; सदगुरु हीन होने  से सत्य वस्तु का भेद...
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महर्षि सद्गुरु सदाफल देव आश्रम सेमरांव आरा | DntvIndiaNews

आरा/भोजपुर | महर्षि सद्गुरु सदाफल देव आश्रम सेमरांव भोजपुर जिला संत समाज को  संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज के असीम कृपा से शताब्दी समारम्भ महोत्सव में उत्कृष्ट कार्य करने वाले गुरू भाई बहनों को आज सम्मान समारोह आयोजित किया गया ।मंच संचालन विधार्थी हंस कुमार ने किया। ...
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अभिमान अक्ल को खा जाता है|DntvIndiaNews

एक बार तन्विक को घर के मुखिया होने का अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता। उसकी छोटी सी दुकान थी। उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था। चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए...
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संस्मरण-आदर्श शिष्या सुगरी देवी कौन थी ? जिनका नाम विहंगम योग इतिहास में अंकित है। अवश्य पढ़ें

परमाराध्य महर्षि सदाफल देव जी महाराज की आदर्श शिष्या सुगरी देवी थी। उसका बचपन का नाम चमेली था।  उसकी शादी ‘गया’ में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जो धर्म मे विशेष अभिरुचि नहीं रखते थे। सन 1947 में जब स्वामी जी का पदार्पण ‘मानपुर गया’ में हुआ...
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सत्संग_की_महिमा/ 24Dec23

मनुष्य के जीवन मे अशांति ,परेशानियां तब शुरु हो जाती है जब मनुष्य के जीवन मे सत्संग नही होता– मनुष्य जीवन को जीता चला जा रहा है लेकिन मनुष्य ईस बारे मे नही सोचता की जीवन को कैसे जीना चाहिये– मनुष्य ने धन कमा लिया,मकान बना लिया,शादी घर...
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स्ववेँद

दया करें सब जीव पर देखें अंतर आत्मा त्याग देह अभिमान “ विहंगम योग कि अंतिम श्रेणी में द्रस्य शरीर को नहीं देखकर जो द्रश्य शरीर का जो अद्रस्य आधार हे इसका अनुभव होता है और साधक अपना देह अभिमान छोड़कर उस अद्रस्य आधार पर रहता हैं।  जहां...
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अभ्यास में मन ठीक-ठीक नहीं लगता, इसका क्या कारण है?

सद्गुरु भगवान् का अमृत उपदेश:- मन बहुत दिनों से विषयों में लगा है तथा विषयों को भोगा है, विषय किया है। वह मन सहज में आपे-आप न लगेगा, नहीं लगता है।  मन को शनैः-शनैः योगाभ्यास में लगाइये, मन को अभ्यास का स्वभाव बनाइये। मन शनैः-शनैः अभ्यास  करने लगेगा,...