आओ करें वन्य संरक्षण
जितना अहंकार को त्याग कर आप प्रकृति के समीप जाएंगे , वह उतना ही आपको स्नेह करेगी यह एक दम सत्य और प्रमाणिक बात है,जो मैंने अपने जीवन में अनुभव की है। अब आप ये सोच रहे होंगे कि प्रकृति क्या है कैसी दिखती है,देखिए प्रकृति असल में...
विचारपूर्वक उपयुक्तता की कसौटी पर परख …
०१ अगस्त २०२४ गुरुवार- ‼
-श्रावण कृष्णपक्ष द्वादशी २०८१
आज की प्रेरणा (समता)
"मूल उद्देश्य"
समता का मूल अर्थ है, समानता । समानता अपने अर्थ में एक दम सरल जान पड़ती है किंतु इसके गहन भाव को हम जीवन पर्यंत भी व्यवहार में क्रियान्वित नहीं कर पाते । समानता का अन्य भाव , पक्षपात रहित भावना । आशय यही है कि हम सभी को हर अवस्था , दशा में सम रहना चाहिए। यही योगी और योग की पराकाष्ठा है ।
समुद्र मंथन से १४ रत्नों में विशेष और महत्वपूर्ण श्री कामधेनु…
गौ माता एक परित्यक्ता "मां"। मानव की बढ़ती की स्वार्थ की भूख और क्रूरता एक मानसिक दिवालियापन। ✍️
अभिलाषा भारद्वाज
“सद्गुण” बढ़ाएं, “सुसंस्कृत” बनें|
३० जुलाई २०२४ मंगलवार-‼️ -श्रावण कृष्णपक्ष दशमी २०८१- ‼️संजीवनी ज्ञानामृत‼️
जगन्नाथ महाप्रभु का रहस्य |
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के 36 साल बाद अपना देह त्याग दिया। जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो श्रीकृष्ण का पूरा शरीर तो अग्नि में समा गया, लेकिन उनका हृदय धड़क ही रहा था।
यज्ञ स्थल तीर्थ से बढ़कर है|देवराहाशिवनाथ
महायज्ञ के यज्ञमंडप की परिक्रमा हरिनाम संकीर्तन करते हुए करता है उसे अर्थ, धर्म काम और मोक्ष की मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बौद्धिक दास न बनिए |
धारणाओं एवं विश्वासों को जाने-अनजाने ज्यों का त्यों अपना लेता है। वह उनके विषय में सत्य असत्य, तथ्य अथवा अतथ्य का तर्क लेकर न तो विचार करता है |
मोहग्रस्त नहीं, विवेकवान बनें |
सोचना क्लिष्ट कल्पना है कि घर वालों को सहमत करने के बाद परमार्थ के लिए कदम उठाएँगे। यह पूरा जीवन समाप्त हो जाने पर भी संभव नहीं होगा।
“सभ्यता”और “शिष्टाचार”व्यक्तित्व के मुकुटमणि |
हमारे आचरण और रहन-सहन में और भी ऐसी अनेक छोटी-बड़ी खराब आदतें शामिल हो गई हैं...
‼️ लक्ष्य ‼️ ज्येष्ठ कृष्णपक्ष द्वितीया २०८१
विवेकानंद के पास आये और उनसे नम्रतापूर्वक पूछा– आपने हम लोगों की बात सुनी। आपने बुरा माना होगा ?
स्वामीजी ने सहज शालीनता से कहा– “मेरा मस्तिष्क अपने ही कार्यों में इतना अधिक व्यस्त था कि आप लोगों की बात सुनी भी पर उन पर ध्यान देने और उनका बुरा मानने का अवसर ही नहीं मिला।” स्वामीजी की यह जवाब सुनकर अंग्रेजों का सिर शर्म से झुक गया और उन्होंने चरणों में झुककर उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली।
प्रार्थना में अतुलनीय बल है | २२ मई वैशाख शुक्लपक्ष चतुर्दशी २०८१
"प्रार्थना" विश्वास की प्रतिध्वनि है । रथ के पहियों में जितना अधिक भार होता है, उतना ही गहरा निशान वे धरती में बना देते हैं । प्रार्थना की रेखाएं लक्ष्य तक दौड़ी जाती हैं, और मनोवांछित सफलता खींच लाती हैं । विश्वास जितना उत्कृष्ट होगा परिणाम भी उतने ही सत्वर और प्रभावशाली होंगे ।