आरा / भोजपुर | भिखारी ठाकुर लोकोत्सव की शुरुआत एक सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना के उत्सव के रूप में हुई। यह तीन दिवसीय आयोजन न केवल भिखारी ठाकुर की स्मृति को समर्पित है, बल्कि भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के प्रति एक गंभीर प्रयास भी है।
मुख्य आकर्षण:
सामाजिक संदेश:
यह उत्सव केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि भोजपुरी भाषा की पहचान और संवैधानिक मान्यता की मांग को लेकर एक निर्णायक आंदोलन की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। वक्ताओं ने सभी आंदोलनरत संगठनों को एकजुट होकर इस अभियान को सफल बनाने का आह्वान किया।
भविष्य की दिशा:
संस्थान के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने संगठनों की एक संयुक्त कमेटी गठित करने का प्रस्ताव रखा, जो इस मुद्दे पर एकजुट प्रयास करेगी।
सांस्कृतिक चेतना का जागरण:
भिखारी ठाकुर लोकोत्सव न केवल भोजपुरी साहित्य और लोककला को जीवंत बनाए रखने का माध्यम है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है।
यह आयोजन भोजपुरी भाषा और संस्कृति के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है, अगर इसके माध्यम से समर्पित प्रयास किए जाएं।
यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भोजपुरी भाषा और संस्कृति की पहचान को संवैधानिक मान्यता दिलाने का मंच भी है। इसने यह संदेश दिया कि भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति को सहेजने और उनकी महत्ता को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
कार्यक्रम की भव्यता और उसकी सांस्कृतिक गहराई ने इसे लोकसंस्कृति प्रेमियों के लिए यादगार बना दिया।