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भोजपुरी भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिए निर्णायक शंखनाद का आह्वान |

आरा / भोजपुर | भिखारी ठाकुर लोकोत्सव की शुरुआत एक सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना के उत्सव के रूप में हुई। यह तीन दिवसीय आयोजन न केवल भिखारी ठाकुर की स्मृति को समर्पित है, बल्कि भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के प्रति एक गंभीर प्रयास भी है।

मुख्य आकर्षण:

  1. पारंपरिक उद्घाटन: भिखारी ठाकुर, बाबू ललन सिंह और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।
  2. गंगा अस्नान और लोकगीत: कमलेश व्यास ने भिखारी ठाकुर के रचित गीतों की प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
  3. परिचर्चा: “भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता तथा अस्मिता की पहचान” विषय पर चर्चा में वक्ताओं ने निर्णायक संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया। सभी संगठनों को एकजुट होकर भोजपुरी भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिए प्रयासरत होने की अपील की गई।
  4. गोंड नाच: जोगीबीर के दरोगा गोंड और उनकी टीम ने गोंड नृत्य की प्रभावशाली प्रस्तुति दी, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
  5. स्मारिका: भिखारी ठाकुर और भोजपुरी संस्कृति पर आधारित स्मारिका का प्रकाशन फरवरी में किया जाएगा, जिसका आवरण पृष्ठ प्रस्तुत किया गया।

सामाजिक संदेश:
यह उत्सव केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, बल्कि भोजपुरी भाषा की पहचान और संवैधानिक मान्यता की मांग को लेकर एक निर्णायक आंदोलन की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। वक्ताओं ने सभी आंदोलनरत संगठनों को एकजुट होकर इस अभियान को सफल बनाने का आह्वान किया।

भविष्य की दिशा:
संस्थान के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह ने संगठनों की एक संयुक्त कमेटी गठित करने का प्रस्ताव रखा, जो इस मुद्दे पर एकजुट प्रयास करेगी।

सांस्कृतिक चेतना का जागरण:
भिखारी ठाकुर लोकोत्सव न केवल भोजपुरी साहित्य और लोककला को जीवंत बनाए रखने का माध्यम है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी प्रोत्साहित करता है।

यह आयोजन भोजपुरी भाषा और संस्कृति के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है, अगर इसके माध्यम से समर्पित प्रयास किए जाएं।

आयोजन का महत्व:

यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भोजपुरी भाषा और संस्कृति की पहचान को संवैधानिक मान्यता दिलाने का मंच भी है। इसने यह संदेश दिया कि भोजपुरी भाषा और लोकसंस्कृति को सहेजने और उनकी महत्ता को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।

कार्यक्रम की भव्यता और उसकी सांस्कृतिक गहराई ने इसे लोकसंस्कृति प्रेमियों के लिए यादगार बना दिया।