the country's first female teacher Savitribai Phule and Fatima Sheikh, a symbol of social revolution
आरा/भोजपुर | देश की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारिका सावित्रीबाई फुले तथा पहली महिला शिक्षिका की सहयोगी फातिमा शेख की जयंती के अवसर पर ऐपवा आरा नगर कमेटी ने 3 जनवरी से 9 जनवरी तक विविध स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित किए। कार्यक्रम क्रांति पार्क, पूर्वी नवादा, बहिरो, शीतल टोला और धरहरा में हुए। इन आयोजनों में सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के चित्रों पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
कार्यक्रम में ऐपवा नगर सचिव संगीता सिंह ने बताया कि,
“सावित्रीबाई फुले ने समाज में व्याप्त पितृसत्ता, जातिवाद और लैंगिक असमानता को चुनौती देते हुए 1848 में देश का पहला बालिका विद्यालय खोला। फातिमा शेख ने इस प्रयास में उन्हें अपना घर और सहयोग प्रदान किया। इस विद्यालय का संचालन फुले दंपति और फातिमा शेख ने मिलकर किया, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक था।”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सावित्रीबाई फुले का योगदान आज भी प्रेरणा देता है।
फातिमा शेख, जो देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका मानी जाती हैं, ने न केवल अपने घर को विद्यालय में परिवर्तित किया, बल्कि अपने जीवन को शिक्षा और सामाजिक समानता के लिए समर्पित कर दिया। उनके योगदान को अभी भी वह सम्मान नहीं मिला है, जिसके वे हकदार हैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ऐपवा नगर अध्यक्ष शोभा मंडल ने शिक्षा के बढ़ते बाजारीकरण और निजीकरण पर चिंता जताई। उन्होंने कहा:
“आज के समय में महंगी शिक्षा के कारण समाज के वंचित तबकों और महिलाओं को उच्च शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के संघर्षों को याद करते हुए हमें सभी के लिए समान और मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना होगा।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षा का निजीकरण महिलाओं और कमजोर वर्गों पर सबसे अधिक असर डालता है।
कार्यक्रम में नगर कमेटी की सदस्य कलावती देवी, पुष्पा देवी, ज्ञांति देवी, गायत्री देवी, लखमुनिया देवी, सरिता देवी, और कांती देवी ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने शिक्षा और लैंगिक समानता के लिए सावित्रीबाई और फातिमा शेख के योगदान को रेखांकित किया और उनके आदर्शों को अपनाने की अपील की।
सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाई, बल्कि समाज में व्याप्त धार्मिक और जातिगत असमानताओं को भी चुनौती दी। उनके संघर्ष और योगदान आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जब समाज में भेदभाव और असमानता की घटनाएं बढ़ रही हैं।
निष्कर्ष:
सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख का जीवन हमें सिखाता है कि शिक्षा केवल ज्ञान का साधन नहीं है, बल्कि यह समानता और सामाजिक सुधार का आधार भी है। उनके कार्यों को याद करना और आगे बढ़ाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।