ज्ञान की बात

भक्ति का प्रसाद

भक्ति मनुष्य के आत्मबल को सशक्त करती है। जब जीवन में भक्ति होती है तो धैर्य अपने आप आ जाता है।
भक्त प्रसन्न इसलिए नहीं रहते कि उनके जीवन में कोई विषमता नहीं होती, बल्कि इसलिए प्रसन्न रहते हैं क्योंकि उनके पास धैर्य की शक्ति होती है। जिस जीवन में प्रभु की भक्ति नहीं होगी, उस जीवन में धैर्य भी कभी स्थायी रूप से स्थापित नहीं हो सकता।

भक्त का जीवन परिश्रम से परिपूर्ण होता है, लेकिन उसमें परिणाम का आग्रह नहीं होता। भक्त जानता है कि उसके हाथ में केवल कर्म है, परिणाम नहीं। यही भाव उसे जीवन के हर उतार-चढ़ाव में संतुलित बनाए रखता है।

कठिन से कठिन परिस्थिति में भी यदि कोई हमें प्रसन्नता के साथ जीना सिखाता है तो वह केवल और केवल धैर्य ही है—और धैर्य का आधार है भक्ति
भक्ति से ही जीवन की वाटिका में प्रसन्नता के पुष्प खिलते हैं।

जय श्री राधे