आरा,भोजपुर | बितेदिनों 02 जनवरी 2025: को सुप्रसिद्ध कथाकार, गीतकार और शिक्षक मधुकर सिंह की 91वीं जयंती के अवसर पर जन संस्कृति मंच, भोजपुर द्वारा एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। ‘लोकतंत्र के योद्धा साहित्यकार मधुकर सिंह’ विषयक इस परिचर्चा में उनके साहित्यिक योगदान और लोकतंत्र को सशक्त बनाने के संदेश पर विचार व्यक्त किए गए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और आरा के सांसद सुदामा प्रसाद ने कहा, “मधुकर सिंह का साहित्य केवल साहित्यिक रचना नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और वैचारिक आंदोलन का आधार है। उन्होंने भोजपुर में सामंतवाद विरोधी लड़ाई लड़ने वाले नायकों की कहानियां लिखीं। उनके साहित्य का संदेश स्पष्ट है—राजनीतिक आंदोलन के साथ सांस्कृतिक आंदोलन को तेज करना होगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि मधुकर सिंह ने अपने लेखन के माध्यम से जमीन से जुड़े नायकों और उनके संघर्षों को सामने रखा, और भाकपा-माले उन्हीं संघर्षों की वैचारिक परंपरा को आगे बढ़ा रही है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए कवि-आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि मधुकर सिंह के साहित्य में दलित, भूमिहीन किसान, खेत मजदूर और महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष का चित्रण मिलता है। उनके पात्र शिक्षा, समानता, और स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हैं। उन्होंने कहा, “आज के दौर में मधुकर सिंह का साहित्य इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि भारत में शोषण, महंगाई, बेरोजगारी और धार्मिक पाखंड जैसी समस्याएं पुनः उभर रही हैं।”
कार्यक्रम में मधुकर सिंह की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए कई प्रस्ताव पारित किए गए:
इस अवसर पर जनगीतकार जितेंद्र विद्रोही ने ‘मिली जुली तेज करीं जा न्याय की लड़इया’ गीत प्रस्तुत किया। साथ ही कथाकार सिद्धनाथ सागर, ऐपवा नेत्री शोभा मंडल, रंगकर्मी धनंजय, आइसा नेता रौशन कुशवाहा सहित अन्य ने मधुकर सिंह के साहित्य और उनकी विचारधारा पर चर्चा की।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने एकमत होकर कहा कि मधुकर सिंह का साहित्य भारतीय लोकतंत्र को सशक्त बनाने और सांस्कृतिक आंदोलन को तेज करने का प्रेरणा स्रोत है। आज के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में उनके साहित्य को पढ़ना और समझना अधिक प्रासंगिक हो गया है।
यह आयोजन मधुकर सिंह की वैचारिक विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।
आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी व केंद्र सरकार भी निशाने पर
सातवें चरण के कार्यक्रम का विवरण:
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