सबके कल्याण के लिए प्रार्थना करें।
प्रार्थना” व्यक्तिगत एवं सामुदायिक दोनों प्रकार से की जा सकती है । व्यक्तिगत प्रार्थना से हम केवल अपनी भलाई की भावनाएँ प्रकट करते हैं।
अपने तक ही सब कुछ परिमित रखते हैं, यह दृष्टिकोण कुछ संकुचित सा है । अकेले-अकेले केवल अपनी भलाई के लिये “प्रार्थना” करने में वह शक्ति नहीं जो सामूहिक प्रार्थना में होती है। वेदों में जहाँ भी प्रार्थना संबंधी ऋचाएँ और मंत्र दिए गए हैं, उन प्रार्थनाओं में एक व्यक्ति के लिये नहीं, बल्कि समुदाय के लिए, सब समाज के लिए, राष्ट्र के अभ्युत्थान के निमित्त, विश्व के कल्याण के लिये प्रार्थनाएँ की गई हैं । विश्व की “भलाई” में हमारी “भलाई” सम्मिलित है । संपूर्ण विश्व के साथ हम हैं, यह भाव लेकर की गई “प्रार्थना” उच्च है ।
वेदों का मूल मंत्र गायत्री है। उस गायत्री मंत्र में “धियो यो नः प्रचोदयात्” का अर्थ वही है कि “जिस सर्वश्रेष्ठ आनंददायक तेज से सब विश्वव्याप्त हो रहा है, उस अत्यंत आनंददायक तेज का हम ध्यान करते हैं । वह “हमें सद्बुद्धि दे, हमारे मन में शुभ विचार उत्पन्न करे।”
“हे देव ! मेरा या इसका कल्याण कर दीजिए. दूसरों का हो या न हो, इसकी मुझे चिंता नहीं। ऐसा भेद-भाव वैदिक प्रार्थना में कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता। वहाँ जो कुछ माँगा गया है, वह समस्त प्राणियों के लिए है। उसका क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थों तक सीमित नहीं। “प्रार्थना” शब्द का ‘प्र’ उपसर्ग अधिक अर्थ से बना है जिसका अभिप्राय है सब प्रकार के समाज के लिए, विश्व में सबके कल्याण के लिए याचना करना, विनीत भाव से निवेदन करना। यह निवेदन अपने तक ही मर्यादित नहीं है । इसके अंतर्गत संसार के समस्त प्राणी आ जाते हैं। वस्तुतः हमें एकत्र होकर सच्चे, निष्कपट एवं विशुद्ध हृदय से सब भेदभाव त्याग कर सामूहिक ( अथवा व्यक्तिगत जैसी अनुकूलता हो) प्रार्थना करनी चाहिए और स्वयं तथा प्राणिमात्र का कल्याण करना चाहिए, साथ-साथ प्रार्थना के पवित्र कार्य का उत्तरोत्तर प्रचार करना चाहिए ।
हममें से प्रत्येक का कर्तव्य है कि प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व जाग्रत हो कुछ अपने हृदयस्थ आत्मा से परमपिता परमात्मा का साक्षात्कार करें और अपना रोम-रोम पवित्र कर ले। शांति को प्रवाहित होने दे । विशुद्ध हृदय से महाप्रभु के अनंत उपकारों का आभार मान कर समग्र प्राणीमात्र के जीवन, आनंद, सुख वृद्धि लिये प्रार्थना करे । इस निर्मल विशुद्ध उपासना से परमात्मा का दिव्य स्पर्श आपकी आत्मा को होगा। आपके समस्त मनस्ताप और क्लेश भस्मीभूत होकर, नवजीवन और नवीन बल प्राप्त होगा और जीवन परम शांत और सुखी होगा। यह क्लेशों से मुक्ति का सुगम उपाय है। यही “प्रार्थना” का रहस्य है ।
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*꧁जय श्री राधे꧂*
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‼️⛳ *मानस संजीवनी ज्ञानपीठ* ⛳‼️
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