जंगलों की आग
प्रकृति में पांच तत्व हैं अग्नि ,जल , वायु, प्रथ्वी और आकाश । यदि इनमें से एक भी न हो या विलुप्त हो जाए तो जीवन की आशा नहीं की जा सकती। इन्हीं पंच तत्वों से मिलकर मानव देह का निर्माण किया गया जो विधाता की सबसे सुंदर रचना है , उसे सब कुछ दिया है, पर श्रष्टि में ईश्वर ने एक नियम ऐसा बनाया जो कभी समान नहीं रहा और वह है असंतुलन और दूसरी बात कर्म की प्रधानता । मनुष्य को कर्म की स्वतंत्रता प्रदान की । और कर्म इतने शक्तिशाली हैं कि इस कर्म के सहारे मनुष्य कुछ पा लेने में समर्थ है । हर चीज दो पहलू बनाए हर एक का विपरीत बनाया ताकि दो भिन्न में तुलना की जा सके। परिणाम जाना जा सके ।
इस संसार में भांति भांति के लोग रहते हैं । कोई गोरा , कोई काला , कोई निपट काला, कोई इतना सुंदर की कल्पना से परे । अद्भुत है उन ईश्वर की यह रचना । ईश्वर में सभी को अपने अपने विभाग दिए उत्तरदायित्व दिए।पर समय की गति के साथ साथ सब कुछ बदल गया है और तेज गति से बदल रहा है जहां मनुष्य की धार्मिक भावनाओं में झूठ आडम्बर के रूप और तौर तरीके बदले वहीं इंसान ने अपनी व अन्य संस्कृतियों को भी प्रताड़ित करना शुरू किया है। अपनी अहम भावना को ध्यान रखते हुए उसने प्रकृति और मानवता दोनों को पीड़ित कर रहा है।
लिखने का अहम विषय जंगलों की आग को लेकर है जो पूरे रूप में मानवीय कृत्यों पर निर्भर करता है। मनुष्य की बढ़ती आशाएं , जरूरतें जो उसे मानसिक रूप से पंगु बना रही है उन्हीं को पूरा करने के लिए वह आज मानव से दानव वृत्ति की ओर जा रहा है।बढ़ते पर्यावरणीय दुष्प्रभाव से हर जनजीन प्रभावित है । क्षय होती आर्थिकी , प्राकृतिक असंतुलन के कारण हर प्राणी उसके दुष्प्रभाव झेल रहा है।जंगलों की आग अक्सर देखा जाए तो बढ़ते तापमान की वजह से ही होता है और उस जंगल की आग कितनी हानि होती है इसका आंकलन करना बहुत कठिन है । ना जाने कितने ही जीव उस आग में जलकर भस्म हो जाते हैं। बड़े जीवों का आश्रय नष्ट होता है। बेघर हो जाते हैं। भूखे मरने लगते हैं ।सड़कों पर आ जाते हैं मानवीय समुदाय के बीच में आ जाने पर ये पीड़ित किए जाते हैं ।तो फिर आखिर ये जाएं तो जाएं कहां ।इनका हक तो इंसान ने छीन लिया जंगल छीन लिए पानी छीन लिया,घर छीन लिए ।इनके साथ तो अन्याय होता आ रहा है।
एक दूसरा पहलू जंगल की आग को लेकर यह है कि अक्सर हम सोचते हैं कि जंगल में आग लगना एक प्राकृतिक कारण है परंतु नहीं इस अपराध के पीछे भी स्वार्थी मनुष्य का ही हाथ है ।इस वर्ष हिमाचल के जंगलों में आग लगी जिसे प्राकृतिक कारण बताया गया । बहुत नुकसान हुआ । हजारों जंगल जल कर राख हो गए ।लेकिन फर्क किसको पड़ा है किसी को नहीं सब विकास की दौड़ में जो शामिल हैं सरकार के इन चीजों के तो समय ही नहीं है।जो वस्तुएं जीवन के लिए अहम वो ही आज के समय में नगण्य बन कर रह गई हैं ।
हिमाचल में मैने बहुत से लोगों के मूंह से सुना है , और यह बात सत्य ही है यहां के लोग वन संरक्षण अधीन लोगों से सांठ गांठ करके अपना स्वार्थ पूरा कर लेते हैं ।”वे पहले तो पेड़ों को काट लेते हैं फिर उन पेड़ो को आग लगा देते हैं । प्रमाण के लिए यह प्राकृतिक अग्नि से जल गया । तो ऐसे कृत्यों में कौन लोग शामिल होते हैं । जांच का दायरा कितना हैं और कहां तक सिमट कर रह जाता है ।
यह तो एक छोटी सी बात मैने लिखी है पर उन जंगलों का दर्द तो बहुत काला है । रुला देने वाला है। आखिर हमारी दौड़ किस आखिरी लक्ष्य के लिए हैं। इस बात का उनको ज्ञान नहीं बस वे दौड़ रहे हैं बिना किसी उद्देश्य के ।जो जीवन के महत्वपूर्ण हैं उसको खो रहे हैं, और जिसकी जरूरत ही नहीं उसके पीछे भाग रहे हैं ।सब भुगतना तो पड़ेगा एक दिन। लेखक :अभिलाषा ✍️
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