भोजन का स्वागत परंपराओं के साथ किया जाता है, तो रिश्ते, संस्कार और संस्कृति दोनों परिपक्व होते हैं। भोजन का मतलब पेट भरना नहीं बल्कि स्वस्थ मन है। हमारे यहां कहावत है, जैसा खाओगे खाओगे वैसा मन होगा, जैसा पिओगे पानी, वैसी होगी वाणी। भोजन, पानी और हवा की शुद्धता ही अच्छी सेहत के लिए जरूरी चीज है।

आजकल लोग तैलीय और चटपटे खाने को ज्यादा महत्व दे रहे हैं, नतीजन वे बीमारियों से जूझ रहे हैं। ज्यादातर मैंने लोगों को यह कहते सुना है कि वे चाय के बिना एक पल भी नहीं रह सकते। तो क्या चाय आपके लिए आपकी जान से भी ज्यादा कीमती हो गई है कि आप इसे छोड़ना पसंद नहीं करते। चाय हमारे भारत में अंग्रेजों के आने के बाद आई और आज के समय में लोग चाय के इतने आदी हो गए हैं पेट की सही खुराक से ज्यादा दिलचस्पी जीभ में है जो कभी त्रप्त नहीं हो सकी |