स्वामी सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज के जेल यात्रा, असहयोग का कारण बना । इस असहयोग आंदोलन में महात्मा गांधी को 10 मार्च 1922 को कैद कर एक वर्ष सजा और स्वामी जी को 22 दिसंबर 1920 को ही दो वर्ष की सजा हुई, जिसमें 12 अक्टूबर 1922 को स्वामी जी और 4 फरवरी 1923 को गांधी जी को जेल की यातनाओं से मुक्ति मिलि।
देश में 1921 में ही असहयोग आंदोलन का उग्र रूप दिखाई पड़ा जिसके पृष्ठभूमि में प्रथम जेल यात्रा करने वाले स्वामी विज्ञानानंद जी ( महर्षि सदाफल देव जी महाराज ) ही थे । स्वामी जी को जेल में अनेक प्रकार की यातनाओं सहन करना पड़ा। सबसे पहले दानापुर जेल में बंद रहे, वहां से 15 फरवरी 1921 को बक्सर जेल भेज दिया गया। अंग्रेज़ सरकार चक्की चलवाने का काम करवाया,जो हाथ विश्व के मानव मात्र को आशीर्वाद देने के लिए है उसमें हथकड़ी लगाना कितनी बड़ी अज्ञानता थी। इसके बाद स्वामी जी को गया, भागलपुर जेल में रहे। 1 वर्ष 10 महीना बिताए।12-10-1922 को स्वामी जी को जेल से रिहा किया गया।इस समय सम्पूर्ण भारत में असहयोग आंदोलन चरम पर था।
जेल को स्वामी जी कृष्ण कोठरी कहते थे। जेल के अन्दर ही स्वामी जी स्ववेंद की विषय सूची तैयार किए थे, बहुत सारे कैदीयों को ब्रह्म विद्या का उपदेश भी किये जिनमें एक राष्ट्रभक्त पलामू जिला के रहने वाले सत्यानंद जी थे। अंग्रेज़ो ने उन पर उग्रवाद का मुकदमा चलाया काशी जेल में फांसी की सजा दे दी । फांसी के पूर्व ही सत्यानंद जी एक व्यक्ति के माध्यम से अपना प्रणाम निवेदित किया था।
जेल यात्रा के बाद स्वामी जी सन 19141 में संकटमोचन नामक पुस्तक की रचना किये जिनमें अंग्रेजी सरकार की दास्तां से मुक्ति के लिए लिखा — ब्रिटिश राज्य अब देवी उठाई।
असुर नीति अब सहा न जाई।।
कूटनीति अन्याय स्वरूपा।
अत्याचार रक्त ले भूपा।।
कर स्वतंत्र भारत दुःख जाई।
हो स्वराज महि स्वर्ग बनाई।।
इस प्रार्थना के बाद गांधी जी द्वारा 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चला जो ब्रिटिश सरकार के लिए खतरे की घंटी बना। स्वामी सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज का संकल्प, अध्यात्मिक प्रयोग, स्वतंत्रता सेनानीयों की कुर्बानी के बदौलत 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।
देश की स्वतंत्रता के लिए अध्यात्मिक शंखनाद करने वाले स्वामी सदाफलदेव जी महाराज योग बल की महिमा लिये खड़े हैं।
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