“स्नेहा पांडेय के कथक नृत्य ने शास्त्रीयता और लोक कला का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया।
“सल्टू राम की टीम का धोबिया नृत्य दर्शकों के लिए सांस्कृतिक विरासत की झलक बना।”
आरा / भोजपुर | भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय भिखारी ठाकुर लोकोत्सव के दूसरे दिन का आयोजन दर्शकों के अभूतपूर्व उत्साह और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की झलकियों के साथ संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में पारंपरिक कला, लोक संगीत और नाटक के प्रदर्शन ने लोगों का दिल जीत लिया।
भोजपुरी की दशा पर स्कूली बच्चों का संवाद
उद्घाटन सत्र में डॉ. पी. सिंह, डॉ. प्रतीक, डॉ. जया जैन, और राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक डॉ. योगेंद्र सिंह सहित अन्य गणमान्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके बाद संभावना उच्च विद्यालय के विद्यार्थियों ने स्वागत गीत और भोजपुरी के वर्तमान हालात पर भाषण प्रस्तुत किए। छात्रों ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को भोजपुरी के महत्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता पर सोचने को मजबूर किया।
नृत्य, संगीत और नाटक के शानदार प्रदर्शन
- भिखारी ठाकुर रचित “बिदेसिया” पर कथक: स्नेहा पांडेय और उनकी टीम द्वारा शास्त्रीय कथक नृत्य ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
- पारंपरिक धोबिया नृत्य: गाजीपुर से आए सल्टू राम और उनकी टीम द्वारा विलुप्त होती इस कला का प्रदर्शन कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण बना।
- कजरी गीत पर नृत्य: आरएनएसडीपीएस स्कूल की छात्राओं ने शिक्षक अमित शंकर के मार्गदर्शन में पारंपरिक कजरी गीत पर नृत्य कर दर्शकों से खूब सराहना बटोरी।
देर रात तक चला नाटक मंचन
देर शाम तक भिखारी ठाकुर रचित प्रसिद्ध नाटक “पुत्र वध उर्फ सौतेली मां” का मंचन सुरेश जी और उनकी टीम द्वारा किया गया। इस नाटक ने समाज में प्रासंगिक मुद्दों को उजागर किया और दर्शकों को गहराई से जोड़ा।
सम्मान समारोह
कार्यक्रम के दौरान “भोजपुरिया सम्मान” गोरखपुर के नंदलाल मणि त्रिपाठी को और “संभावना सम्मान” देवरिया के साहित्यकार जनार्दन सिंह को प्रदान किया गया।
सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का प्रयास
इस आयोजन का उद्देश्य विलुप्त होती लोक कलाओं को पुनर्जीवित करना और भिखारी ठाकुर की सांस्कृतिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना था।
कार्यक्रम की सफलता के पीछे अध्यक्ष नरेंद्र सिंह, कोषाध्यक्ष रामजी यादव, रंगकर्मी रंजन यादव और उनकी पूरी टीम का विशेष योगदान रहा।
“भिखारी ठाकुर लोकोत्सव” ने साबित किया कि हमारी पारंपरिक कला और संस्कृति को संरक्षण और संवर्धन देने के लिए इस तरह के आयोजनों की कितनी जरूरत है।